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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०९ सू० १ भव्यद्रव्यनारका दिनां निरूपणम् २०५ स्थितिज्ञानाय पश्नयन्नाह - 'भवियदन्न' इत्यादि । 'भावियदव्वनेरइयस्स णं भंते !' भव्यद्रव्यनैरथिकस्य खलु भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पनचा' कियत्कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जहभेणं अंतोमुहुसं' जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् नैरयिकस्य जघन्या स्थितिरित्यर्थः 'उकोसेण पुत्रकोडी' उत्कृष्टतः पूर्वकोटिः यः अन्तर्मुहूर्त्तायुकः संज्ञी वा असंही मृत्वा नरकगत गन्तुं योग्यो वर्तते तमाश्रित्य भव्यद्रव्यनैरथिकस्य जघन्या स्थितिरन्तर्मुहूर्त प्रमाणात्मिका कथिता, तथोत्कृष्टपूर्वकोटि स्थितिमान् संज्ञी पञ्चे
इस प्रकार से भव्यनारकादि के स्वरूप को जानकर अब गौतम उनकी स्थिति को जानने के लिये प्रभु से इस प्रकार से प्रश्न करते हैं- 'भवियद बनेरइयस्स णं भंते!' हे भदन्त जो भव्यद्रव्यनैरपिक है, उसकी 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' हे
गौतम ! जो भव्यद्रव्यनैरयिक है, उसकी जघन्य स्थिति एक अन्तमुहूर्त की होती है और 'उक्को सेणं पुत्रकोडी' उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटि की होती है यह उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्टरूप में एक पूर्वकोटि की स्थितिवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक अथवा मनुष्य को लेकर जो मरकर नरक गति में जाने के योग्य है कही गई है तथा जो अन्तकी जघन्य स्थिति कही गई है। वह अन्तर्मुहूर्त की आयुवाले संज्ञी अथवा असंज्ञी को जो मरकर नरकगति में जाने योग्य है, उनको लेकर कही गई है ऐसा जानना चाहिये । इस प्रकार से भव्यद्रव्य
આ રીતે ભવ્યદ્રવ્ય નારકાદિના સ્વરૂપને જાણીને હવે ગૌતમસ્વામી તેઓની स्थितिने भगुवानी रछाथी अलुते या प्रमाणे पूछे छे -“भवियद्व्व नेरइयरस णं भंते!" हे भगवन् के भव्य द्रव्य नैरयिः छे, तेखानी "केवइये कालं ठिई पण्णत्ता" स्थिति डेंटला आज सुधीनी उडेवामां भावी छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलु छे - " गोयमा !" हे गौतम! "बहणणं अंतोमुहुत्तं” ने लव्यद्रव्य नैरयि छे, तेनी कधन्य स्थिति मे४ अन्तर्मुहूर्तनी डोय छे, तेभ४ " उक्कोसेणं पुब्वकोडी" उत्कृष्ट स्थिति पूर्वछोटी डाय છે, આ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ, ઉત્કૃષ્ટ રૂપમાં એક પૂર્વ કેાટીની સ્થિતિવાળા સની પંચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક અથવા મનુષ્ય મરીને નરકગતિમાં જવાને ચાગ્ય હોય તેઓને કહી છે. તથા જે અંતર્મુહૂતની જઘન્ય સ્થિતિ કહેવામાં આવી છે, તે અંતર્મુહૂત ની આયુષ્યવાળા સન્ની તથા અસી કે જે મરીને નરકગતિમાં જવાવાળા હોય છે, તમને ઉદ્દેશીને કહી છે તેમ સમજવુ',
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩