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________________ - १४० भगवतीसत्रे संग्रामे उपस्थितेऽस्माकमिदमेव शस्त्रमिति बुद्धया यदेव तृणादिवस्तु उपाददते इत्यर्थः 'तं गं तेसिं देवाण' तदेव खलु तेषां देवानाम् पहरणरयणत्ताए परिणमई' प्रहरणरत्नतया परिणमति, तदेव तृणकाष्ठपत्रादिवस्तु श्रेष्ठशस्त्रतया परिणमति, शस्त्रबुद्धया उपादीयमानं तृणादि सर्वमपि वस्तु शस्त्ररूपेण परिणमति ! इह देवानां यत् वृणाद्यपि वस्तुजात पहरणीभवति तत् पूर्वोपार्जितपुण्यप्रभावबलात् , यथा सुभूमचक्रवर्तिनः स्थालमिति । यथा देवानामुपादीयमानं तृणाद्यपि शस्त्रीभवति तथा किमसुराणामपि भवतीत्याशयेन प्रश्नयन्नाह-'जहेब' इत्यादि । 'जहेव देवाणं तहेच असुरकुमाराणं' यथैव वैमानिकदेवानां तथैव असुरकुमाराणाम् ? हे भदन्त ! यथैव शस्त्रबुद्धयोपादीयमानं तृणापि महरणीभवति देवानां, तथैव असुरकुमारापत्थरों के छोटे २ टुकडों को छूता है अर्थात् इस संग्राम में हमारा यही शस्त्र है इस बुद्धि से जिस तृणादि पदार्थ को स्पर्श करता है उठाता है। तेणं तेमि०' वही तृणादि वस्तु उनके श्रेष्ठ हथियार के रूप में परिणत हो जाती है। शस्त्र बुद्धि से ग्रहण की गई हर एक तृणादिवस्तु शस्त्ररूप में बदल जाती है। यहां जो ऐसा कहा गया है कि देवों द्वारा शस्त्रबुद्धि से स्पृष्ट की गई प्रत्येक तृणादिवस्तु शस्त्ररूप में परिणत हो जाती है सो यह उनके पूर्व के पुण्य के प्रभाव के बल से होता है ऐसा जानना चाहिये । जैसा सुभूम चक्रवर्ती के उनका स्थाल हो गया था। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि जिस प्रकार से देवों द्वारा शस्त्रबुद्धि से स्पृष्ट की गई तृणादि वस्तु उनके शस्त्ररूप से परिणत हो जाती है, तो क्या इसी प्रकार से असुरकुमारों के भी होता है ? यही बात-'जहेव देवाणं तहेव असुर०' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित की तमा लगेरे पहायने ५ छ, 3 343 छ, “तेणं तेसिं०" ते तgwal દિ વસ્તુ તેઓના શ્રેષ્ઠ હથિયાર રૂપે પરિણમે છે. શસ્ત્ર-બુદ્ધિથી લીધેલ કઈ પણ તણખલું વિગેરે વસ્તુ ઉત્તમ શસ્ત્રરૂપે બદલાઈ જાય છે. અહિયાં જે એમ કહ્યું છે કે-–દેવોએ શસ્ત્ર બુદ્ધિથી સ્પર્શ કરેલ દરેક તૃણાદિ વસ્તુ શસ્ત્ર રૂપે બદલાઈ જાય છે, તે તેના પૂર્વોપાર્જીત પુણ્યના પ્રતાપથી જ તેમ થાય છે. તેમ સમજવું જેવી રીતે સુભમ ચક્રવતિની થાળી તેમના હથિયાર રૂપે પરિણમી હતી. હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે--જે રીતે દેવેએ શસ્ત્રબુદ્ધિથી ગ્રહણ કરેલ તૃણ દિ વરતુ, તેઓના શસ્ત્ર રૂપે પરિણમે છે, તેવી જ રીતે અસુર सुमाराने ५४५ मने छ १ मा पात “जहेव देवाणं तहेव असुर०" 20 सूत्रपाठ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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