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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१८ ३०७ सु० ४ देववक्तव्यता कजीवस्पृष्टानि वा तेषां देवानां त्रिकुर्वितनानाशरीराणि किम् एकजीवसम्बद्धानि अनेक जीवसम्बद्धानि वेति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगजीवफुडाओ जो अणेगजीव फुडाओ' एकजीवस्पृष्टानि नो अनेकजीवस्पृष्टानि देवानां विकुर्वितनानाशरीराणि न विभिन्नजीवसंवद्धानि भवन्ति किन्तु एकजीव संबद्धान्येव एकएव देवजीवः सर्वेषां शरीराणां निर्माता, तस्यैव निर्मातु देवस्य त्रिकुर्वितनानाशरीरैः सह संबन्धादित्युत्तरम् । पुनः प्रश्नयति गौतमः ' ते णं भंते !' इत्यादि । ' ते णं भंते!' ते खलु भदन्त ! 'तेर्सिणं बोंदीणं' तेषां विकुर्वितशरीराणां खलु 'अंतरा' अन्तराणि 'किं एग जीवफुडाओ अणेगजीवडाओ' किम एकजीवस्पृष्टानि अनेकजीवस्पृष्टानि वा ? हे भदन्त । तेषां देवसंवन्धिविकुर्वितशरीराणामन्तराणि किमेकजीवसंवद्धानि अनेकजीवसंवद्धानि वेति प्रश्नः, भगवानाह - गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम! ' एगजीवफुडा णो अणेगजीवफुड।' एकजीवस्पृष्टा नो अनेकजीवस्पृष्टा, विकुर्वितशरीराणारूप सब एक जीव से सम्बद्ध हैं या अनेक जीवों से सम्बद्ध है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा०' हे गौतम ! वे देव द्वारा विकुर्वित हुए सब रूप एक ही जीव द्वारा संबद्धित है भिन्न जीवों से संबंद्धित नहीं है। तात्पर्य ऐसा है कि एक ही देव जीव उन सब विकुर्वित रूपों का करनेवाला है अतः उस देव का ही विकुर्वित उन नाना शरीरों के साथ सम्बन्ध है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'ते णं भंते !०' हे भदन्त ! विकुर्वितशरीरों के जो अन्तर हैं वे क्या एक जीव से सम्बद्धित हैं या अनेक जीवों से सम्बद्धित है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा०' हे गौतम! वे देवद्वारा विकुर्वित हुए शरीरों के अन्तर अनेक १३५ રૂપા એક જીવથી બંધાયેલ છે? કે અનેક જીવાથી ખંધાયેલા છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरभां अलु डे छे ! --" गोयमा !” डे गौतम! ते देवद्वारा विदुर्वित थयेला બધા જ રૂપે એક જ જીવતા સબંધવાળા છે. જુદા જુદા વાના સબધવાળા નથી. કહેવાનું તાત્પ એ છે કે—એક જ દેવ સ``ધી જીવ તે બધા વિકવિત રૂપાને બનાવનાર છે. તેથી વિકૃવિત થયેલા તે અનેક શરીર સાથે તે દેવને જ સ`ખધ છે. हवे गौतम स्वामी अलुने गोवु पूछे छे ! - "ते णं भंते!" हे भगवन् વિધ્રુણા થયેલ શરીરાનું જે અંતર છે, તે શુ એક જીવના સંબંધવાળુ છે કે અનેક જીવેના સંબધવાળુ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે“गोयमा !” देवद्वारा विदुर्वित थयेस शरीरानुं मांतर अनेक होवा छतां पशु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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