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भगवतीसूत्रे
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मारणान्तिकं कर्म निर्जरयत:-मरणसमीपवत्ति कर्म क्षपयत इत्यर्थः 'मारणतियं मार मरमाणस्स' मारणान्तिकं मारं म्रियमाणस्य मारणान्तिकायुर्दलिकापेक्ष मारं नियमाणस्य मरणं कुर्वत इत्यर्थः 'मारणतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स' मारणान्तिकं-मरणसमीपयर्तिशरीरपुद्गलापेक्षं शरीरं विमजहता-मुश्चत:-अन्तिम शरीरं त्यजत इत्यर्थः शरीरस्य पुनरग्रहणात् 'जे चरिमा निजरा पोग्गला' ये घरमा:-अन्तिमा निर्जराः पुद्गलाः निजीयमाणाः पुरला इत्यर्थः 'तेज' ते खल 'पोग्गला' पुदलाः 'मुटुमा' सूक्ष्माः 'पण्णत्ता' पज्ञप्ताः 'समणाउसो' श्रमणा युष्मन् ! हे श्रमण आयुष्मन् ! हे भगवन् ! 'सब लोगपि य णं ते ओगाहिता णं
का वेदन कर रहा है, मरणसमीपवर्ती कर्म का क्षय कर रहा है, मारणान्तिकायुर्दलिकों की अपेक्षा से जो मरण कर रहा है, मरणसमीपवर्ती शरीर पुद्गल की अपेक्षा से जो शरीर का त्याग कर रहा है-अर्थात् अन्तिम शरीर का जो त्याग कर रहा है। ऐसे उस भावितात्मा अन. गार के जो 'चरिमा निजरा पोग्गला' अन्तिम-निर्जीयमाण पुद्गल है। 'ते णं खलु पोग्गला' वे पुद्गल 'सुष्टुमा' सूक्ष्म 'पणाप्ता' कहे गये हैं। हे श्रमण ! आयुष्मन् ! 'सव्यं लोगं पिय गं' ओगाहिता णं चिटुंति' वे सूक्ष्म पुद्गल क्या समस्त लोक को भी अवगाहित करके ठहरे हुए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता मागंदिय पुत्ता०' हां माकन्दिकपुत्र! पूर्वोक्त विशेषण सम्पन्न उस भावितात्मा अनगार के वे सूक्ष्म पुदल यावत् सम्पूर्ण लोक को अवगाहित करके उसमें ठहरे हुए हैं।
ત્યાગ કરી રહ્યા છે, અર્થાત્ અંતિમ શરીરને જે ત્યાગ કરી રહ્યા છે. એવા તે ભાવિ. तात्मा २२ 'चरिमा निज्जरा पोग्गला' मन्तिम निभाए छ. 'तेणं खलु पोग्गला' ते पुस 'सुहुमा' सूक्ष्म 'पण्णत्ता' हा छ. 3 श्रम मायुनन् “सव्वं लोग पि य णं ओगाहित्ता णं चिटुंति" ते मे सूक्ष्म पुस। समस्ताने भडित ४श २॥ छ ? तेना उत्तरमा प्रभु ४९ छे ? 'हंता मागंदियपुत्ता' ७ मा हियपुत्र पूजित विशेष मावितामा मानना જે સૂક્ષ્મ પુદ્ગલ યાવત્ સંપૂર્ણ લોકને અવગાહિત કરીને તેમાં રહેલ છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૨