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________________ ६६० भगवती सूत्रे " अवादीत् उक्तवान् किमुक्तवान् ? तत्राह - ' एवं खलु' इत्यादि, 'एवं खलु अज्जो' एवं खलु आर्याः 'काउलेस्से पुढवीकाइए तहेत्र जाव अंतं करे?' कापोतिकलेव यः पृथिवीकायिक स्वथैव यावदन्तं करोति, उत्तरत्रित यस्य च यथावदनुवादः करणीयः, माकन्दिकपुत्रेणानगारेण भगवतः सकाशात् पृथिवीकायिककापोतिकलेश्य जीवादिवनस्पत्यन्त जीवविषये यदवगतम् तत्सर्वं निवेदितं श्रमणेभ्य इति भावः । 'तर णं ते समणा णिग्गंथा' ततः खलु तदनन्तर किल, माकन्दिकपुत्रस्य कथनानन्तरम्, ते श्रमणाः निग्रन्थाः 'माकंदियपुत्तस्स अणगारस्स' माकन्दिकपुत्रस्यानगरस्य 'एवमाक्खमाणस्स' एवम् उक्त प्रकरेण आचक्षाणस्य - कथयतः 'जाव एवं वयासी' उन्होने श्रमण निर्ग्रन्थों से ऐसा कहा - ' एवं खलु अज्जो ! काउलेस्से पुढवीकाइए तहेव जाव अंतं करेह' हे आर्यों कापोतलेइयावाला पृथिवीकायिक उसी प्रकार से यावत् अन्त करता है । यहाँ उत्तर त्रितय का यथावत् अनुवाद कापोतिक लेइवावाले पृथिवीकायिक, अकायिक, एवं वनस्पतिकायिक जीव के विषय में जो जाना वह सब उन्होंने यहां श्रमणों से कह दिया । 'तए णं ते समणा निग्गंधा' इसके बाद उन श्रमण निर्ग्रन्थों ने 'माकदियपुत्तहत अणगारस्स' माकन्दिक पुत्र अनगार के उक्त प्रकार से किये गये कथन को यावत् 'एवं परुवे माणस्स इस प्रकार की प्ररूपणा को सुनकर एयम नो सद्दति' उनके इस अर्थ की श्रद्धा नहीं की, उसे अपनी प्रतीति का विषय नहीं बनाया, उनका वह कथन उन्हें रुचिकर नहीं हुआ तात्पर्य , 6 एवं वयाखी" तेथे श्रम निर्थ थाने या प्रमाणे उर्छु “ एवं खलु अजो ! काउलेस्से पुढवी हाइए तहेव जाव अंतं करेइ' डे आर्यो ! अयोतलेश्यावाजा પૃથ્વીકાયિક કાપાતલેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયક જીવપણાથી મરીને તરત મનુષ્ય શરીરને મેળવીને તેમાં શુદ્ધ સમ્યફૂલ પ્રાપ્ત કરીને સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય छे, भुक्त थाय छे. परिनिर्वात थाय छे, अने सर्व दु:मोनो अत रे छे. માકઢીપુત્ર અનગારે કાપાતિક લેશ્યાવાળા પૃથ્વિકાયિક, અને વનસ્પતિકાયિક જીત્રના વિષયમાં ભગવાન પાસેથી જે પ્રમાણે જાણ્યુ' હતુ. તે સઘળુ· કથન अडियां श्रमशोने उड्डी संभाव्य : "तए णं ते य स्वमणा निग्गंथा" तेपछी श्रम निर्थ थोथे " मार्केदियपुत्तर अणगाररस " भाउहीपुत्र अनगारमा पूर्वेत अथनने यावत् " एवं परूवे माणस" या रीतनी अ३पथा सांभजीने " एवमठ्ठे नो सहहे ति" तेयोना आ अथनमां श्रद्धा उरी नहि तेने पोतानी પ્રતીતિના વિષય નખનાન્યે. અર્થાત્ ઉક્ત કથન તેમને રુચિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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