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भगवतीसत्रे मनुष्यदेहविशिष्टो भवतीत्यर्थः, 'लभित्ता' लब्ध्वा, "केवल बोहिं बुज्झइ' केवलं बोधि बुध्यते, शुद्धसम्यक्त्वं प्राप्नोतीत्यर्थः 'बुज्झित्ता' बुद्ध्वा-शुद्धसम्यक्त्वमवाप्य 'तो पच्छा सिज्झई ततः पश्चात् सिद्धयति 'जाव अंतं करेइ' यावदन्त करोति, अत्र यावत्पदेन मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् , एतेषां संग्रहो भवति तथा च हे भदन्त ! पृथिवीकायिको जीवः कापोतिकलेश्यावान पृथिवीकायं परित्यज्य मनुष्यदेह लब्ध्वा केवलज्ञानमवाप्य सिद्धिं याति बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदुःखानामन्तं करोति किमिति प्रश्नः। भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता मागंदियपुत्ता' हन्त, मागन्दिक पुत्र ! 'काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ' कापोतिकलेश्यः पृथिवीकायिको यावदन्तं करोति अत्र यावत्पदेन-'काउलेस्से मनुष्यसंबन्धी शरीर को प्राप्त कर लेता है। 'लभित्ता केवलं बोहिं पुज्झइ' और उसे प्राप्त कर वह उसमें शुद्ध सम्यक्त्व को पा लेता है, तो 'बुज्झित्ता' उस शुद्ध सम्यक्त्व को पाकर 'तो पच्छा सिज्झइ' इसके बाद वह सिद्ध हो जाता है । 'जाव अंतं करेह' सकल दुःखों को नाश कर देता है ? यहां यावत्पदसे 'मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम' इन पदों का ग्रहण हुआ है। तात्पर्य पूछने का ऐसा है कि कापोतिक लेयावाला पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायको छोड कर क्या मनुष्य देह पाकर के और केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्धि को पा लेता है ? वह 'धुद्ध तत्व का ज्ञाता' हो जाता है ? मुक्त हो जाता है ? परिनिर्वात हो जाता है ? और सकलदुःखों का अन्त कर देता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता मागंदिय पुत्ता' हा माकंदिक पुत्र ! वह ऐसा हो जाता है । अर्थात् कापोतलेश्यावाला पृथिवीकायिक जीव यावत् अन्त कर देता भनु०५ शरीरने मेवे छ ? भरी मनुष्य समi anय छ ? भने 'लभित्ता केवलं वोहिं बुज्झइ' ते भगवान से शरीरथी शुद्ध सभ्य भी शछ १ 'बुज्जित्ता' शुद्ध सभ्यपने पामीन 'तओ पच्छा सिज्जइ' ते पछी ते सिद्ध थाय? 'जाव अंतं करेई' यावत् सा माना नाथ रे छ१ महि यात्५४थी 'मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदु खानाम् ' । पहानी सह ये . પૂછવાનું તાત્પર્ય એ છે કે—કાપતિક વેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવ પૃથ્વીકાયને છોડીને મનુષ્યશરીર પામીને અને કેવળજ્ઞાન મેળવીને શું સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી શકે છે? તે બુદ્ધ એટલે કે તત્વને જાણનારે બની શકે છે? મુકત થઈ શકે છે? પરિનિર્વાત બની શકે છે ? અને સકળ દુઃખને અંત શું ४शश छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छ ?--'हंता मागंदियपुत्ता, હા માકદિયપુત્ર તે કાપતિક લેફ્સાવાળે પૃવીકાયિક જીવ તે પ્રમાણે બની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨