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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०५ सू० १ इशानेन्द्रवक्तव्यता ४७९ सभा प्रज्ञप्ता हे भदन्त ! ईशानेन्द्रस्य सुधर्मासमा कुत्र विद्यते इति प्रश्ना, भगवानाह- गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स पबयस्स' मन्दरस्य मन्दरनाम्नः पर्वतस्य 'उत्तरेणं' उत्तरेउत्तरस्यां दिवोत्यर्थः 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' अस्याः रत्नप्रभायाः पृयिव्याः 'बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' बहुसमरमणीयात् भूमिभागात् 'उडूं पांचवें उद्देशे का प्रारंभचतुर्थोउद्देशक के अन्त में वैमानिकों के सम्बन्ध में वक्तव्यताकही हैं. अब इस पञ्चम उद्देशक में ईशानेन्द्र की वक्तव्यता कही जावेगी अतः इसी सम्बन्ध को लेकर यह पञ्चम उद्देश कहा जा रहा है'कहिणं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा' इत्यादि । ____टीकार्थ--इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कहिणं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज जो ईशान है-उनकी सुधर्मा सभा कहां कही गई है ? अर्थात् ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा कहां है ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा -'गोयमा' हे गौतम! 'जंबुद्दीवे दीवे इस जबूद्वीप नामके द्वीप में स्थित मन्दर नामका पर्वत है, उस पर्वत की उत्तर दिशा में 'इमीसे रयणप्पभार पुढवीए' इस रत्नप्रभा पृथिवी के 'बहुसमरमणिज्जाभो भूमिमा. गाओ' बहुसमरमणीय भूमिभाग से 'उडूं चंदिममूरिय० जहा ठाणपदे.' ચેથા ઉદ્દેશાના અંતમાં વૈમાનિકના સંબંધમાં કહેવામાં આવ્યું છે. હવે આ પાંચમાં ઉદ્દેશામાં ઈશાનેન્દ્રના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવશે જેથી આ સંબંધને લઈને આ પાંચમાં ઉદ્દેશાને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે– 'कहि णं भंते ईसाणस्स देविवस्त्र देवरन्नो सभा सुहम्मा' त्याला टी -20 सूत्रद्वा२गीतमभीमे प्रभुने मे पूछयु छ -'कहिणं भंते ! ईसाणस्न देविंदस्स देवरन्नो सभा सुइम्मा पण्णत्ता' 3 मवान् हेवेन्द्र દેવરાજ ઈશાન છે તેમની સુધર્માસભા કયાં કહેવામાં આવી છે અર્થાત્ ઈશાનેન્દ્રની સુધર્માસભા કયાં છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે'गोयमा ! गौतम 'जंबूहीवे दीवे' मा यूद्वीपमा २ म४२ (मई) पत छ त ५ तनी उत्तर दिशामा 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' मा २नमा Yilu 'बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' मसभरमणीय भूमिलाया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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