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प्रमेयवन्द्रिका टीका श) १७ उ०४ सू०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणम् ४६७ दिकूत्रप में अलोक के व्याप्त होने के कारण शेष दिकूत्रय में ही प्राणा. तिपातजन्य किया होगी। तथा जहां दिग्द्वय में अलोक होगा वहां चार दिशाओं में क्रिया होगी, तथा-जहां एक ही दिशा में व्याघात होगा वहां शेष पांच दिशाओं में ही वह क्रिया होगी, तथा जब जीव मध्य में अवस्थित होगा तब प्रतिबन्धक अलोक के अभाव में उस जीव की छहों दिशा में वह क्रिया होगी। 'सेप्लाण निधमा छदिसिं' 'समुच्चय जीव
और एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय अन्य जीवों की नियम से छहों दिशाओं में प्राणातिपात से क्रिया होती है। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अत्थि णं भंते ! जीवाणं मुसा. वाएक किरिया कज्जइ' हे भदन्त ! मृषावाद से क्या जीव को क्रिया होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हंता अत्थि' हां, गौतम ! मृषा वाद से भी जीवों को क्रिया होती है-कर्मबन्ध होता है। 'सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जई' हे भदन्त ! वह क्रिया आत्मप्रदेशों से स्पृष्ट होती है या अस्पृष्ट होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'जहा पाणाइवाएणं दंडओ एवं मुसाधारण वि' हे गौतम! प्राणातिपात को आश्रित करके छठे उदेशक का प्रकरण जैसा हमने तुम्हें स्मरण कराया है उसी प्रकार से भूषावाद को आश्रित करके भी वही सब प्रकरण यहां હોવાને કારણે બાકીની ત્રણ દિશામાં જ પ્રાણાતિપાતથી થવાવાળી ક્રિયા થશે. અને જ્યાં બે દિશામાં અલેક હશે ત્યાં બાકીની પાંચ દિશાઓમાં જે તે ક્રિયા થશે. અને જ્યારે જીવ મધ્યમાં અવસ્થિત રહેશે ત્યારે પ્રતિબન્ધક અલેકના मनावमा त ने छ. शिसभा त लिया थरी "सेसाणं नियमा छदिसिं" સમુચ્ચય જીવ અને એકેન્દ્રિય જ શિવાયના બીજા જેને નિયમથી એ દિશાઓમાં પ્રાણાતિપાતથી થવાવાળી કિયા થાય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી प्रभुने से पूछे छे 3-"अस्थि णं भते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया फजई" હે ભગવન્ મૃષાવાદ-અસત્ય વચનથી જીવને ક્રિયા-કમને બંધ થાય છે? તેના उत्तरमा प्रभु छ है "हंता अत्थि" । गौतम ! भृषापाथी ५ वाने लिया थाय छे. अर्थात् ममय थाय छ, “सा भते ! कि पुद्रा कज्जइ, अपुद्धा
==” હે ભગવન તે ક્રિયા આત્મપ્રદેશોથી પૃષ્ટ થઈને થાય છે કે અપૃષ્ઠ यधने थाय छ १ तेना उत्तरमा प्रभु ४९ छे -"जहा पाणाइवाएणं दंडओ एवं मुसावारण वि" 3 गौतम ! प्रायोतियातना माश्रय री ५७॥ शत। છઠા ઉદ્દેશાનું પ્રકરણ મેં જેમ કહ્યું છે, એજ રીતે મૃષાવાદને આશ્રય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨