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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०४ स०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणम् ४६३ येऽपि सर्व बोद्धव्यम् ‘एवं जाव परिग्गहेणे' एवं यावत् परिग्रहेण अत्र यावत् पदेन मृषावादादत्तादानमैथुनानां संग्रहः यथा प्राणातिपातेन देशविषये दण्डकः कथितस्तथैव मृषावादावाश्रयणेन प्रदेश विषयेऽपि दण्डको ज्ञातव्यः ततश्च प्रदेशविषयेऽपि मागातिपातादारभ्य परिग्रहान्तपञ्चपदार्थेन पश्चदण्ड का भवन्तीति २० । 'एवं एर वीसं दंडगा' एवम् एते विंशतिर्दण्ड का भवन्ति २० । विशतिश्व दण्डका इत्यम् सामान्यतो जीवानां प्राणातिपातादि घटित एको दण्डकपश्चकः ५। समयघटितो द्वितीयो दण्डकपञ्चकः १०, देशघटितस्तृतीयो दण्डकपञ्चक: १५. प्रदेशवटितश्चतुर्थों दण्ड काश्वका २० इति चतुःसंख्यायाः पञ्चसंख्यया गुणने कृते विंशतिरेव दण्ड का भवन्तीति ।मु० १॥ को आश्रित करके यावत् परिग्रह द्वारा होनेवाले कर्मबन्ध के विषय में भी जानना चाहिये । 'एवं एए वीसं दंडगा' इस प्रकार से ये सामान्य पांच दण्डक तथा समय, देश और प्रदेश को लेकर हुए ५-५-५ कुल मिलकर २० दण्डक होते हैं। इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से प्राणातिपात आदि क्रियाओं से जायमान कर्मषन्ध के विषय में पूछा है-अतः यह प्रश्न उन्होंने कहां पूछा इस विषय को संगति बैठाने के लिये सूत्रकार कहते हैं-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उस काल और उस समय में 'रागिहे नघरे' राजगृह नामका नगर था । उस नगर में 'जाव एवं वयासी' उन्होंने यावत् प्रभु से इस प्रकार पूछा-यहां यावत् शब्द से 'गुणसिलए चेहए सामी समो. सढे' यहां से लेकर 'पंजलि उडे' यहां तक का पाठ लिया गया है समा. "एवं एए वीसं दंडगा" 21 प्रमाणे सामान्य पांय ४४ तथा સમય, દેશ, અને પ્રદેશની સાથેના ૫-૫-૫ એમ આ પંદર મળીને કુલ વીસ દંડકે બને છે. આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને પ્રાણાતિપાત વિગેરે ક્રિયાઓથી થવાવાળા કર્મબંધના વિષયમાં પૂછ્યું છે. જેથી આ પ્રશ્ન તેઓએ કયાં ५७ये। १ मा विषयनी सती सारा सूत्र२ ४ -"तेणं काले तेणं समएण" से मन त समये "रायगिहे नयरे" ॥ नामनु नगर ते नमः "जाव एवं वयात्री” तमामे यावत प्रभुने । प्रमाणे ५७यु. मडियां यावत् ७४थी 'गुणसिलए चेइए सामी समोसढे" । पाथी सधन “पंजलि उडे" महि सुधीन। ५४ अ यये। छे. "अत्थि णं भंते ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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