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________________ ४४८ भगवतीसूत्र संपन्नता वेदनाध्यासनता मारणान्तिकाध्यासनता एतानि खलु भदन्त ! पदानि कि पर्यवसानफलानि प्रज्ञप्तानि श्रमणायुष्मन् ? गौतम ! संवेगो निर्वेदः यावत् मारणान्तिकाध्यासनता एतानि खलु पदानि सिद्धिपर्यवसानफलानि प्रज्ञातानि श्रमणायुष्मन् तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावद् विहरति ।मु० ३॥ सप्तदशके शतके तृतीयोदेशः समासः टीका--'अह भंते !' अथ भदन्त ! 'संवेगो' संवेगा-संवेजनं संवेगो मोक्षाभिलाषः 'निव्वे' निवेदः संसारविरक्तता गुरुसाहम्मीयमुस्सूसणया' गुरुसाधर्मिकशुश्रूषगता गुरूणां दीक्षाचार्याणाम् साधर्मिकाणाम् एकसमाचारीको सामान्यसाधूनां शुश्रूषमता सैव गुरूसाधकिशुश्रूषणता 'आलोयण या' आलोचनता आ-अभिविधिना सालदोषाणां लोवना गुरुणामने प्रकाशना आलोचना आलोचनैव आलोचनता तथा 'निंदगया' निन्दनता निन्दनम् आत्मनैव आत्मदो इस प्रकार सभेदचलना धर्म को कहकर अप स्त्रकार संवेगादि धर्मों को फल सहित प्रकट कहते हैं-- 'अहभंते ! संवेगनिव्वेए गुरु साहम्मियसुस्सूसणया आलोयणया' इत्यादि। ___टीकार्थ--इस सूत्र द्वारा गौतमने प्रभु से पूछा है कि जो संवेग आदि पद हैं वे सार्थक है या निरर्थक है-इ लकी आराधना का अन्तिम फल जीव को प्राप्त होता है । 'अहमते ! संवेगे' हे अदन्त ! मोक्षाभिलाषरूप जो संवेग है, निवेए' संसार से विरक्तता रूप जो निर्वेद है, 'गुरुसाहम्मीय. सुस्पूसणया' दीक्षाचार्य' दीक्षाचार्यरूप गुरुजनों की और एक समाचारि वाले सामान्य साधुजनों की सेवा रूप शुश्रूषणता, 'आलोयणया' सकल दोषों को गुरु के समक्ष प्रकाश करना, 'निंदणया' अपने दोषों को अपने આ રીતે ભેદ સહિત ચલના ધર્મને બતાવીને હવે સૂત્રકાર ફલસહિત સંવેગાદિ ધર્મને પ્રગટ કરે છે.– "अह भंते ! संवेगनिव्वेए गुरुसाहम्मियसुस्सूखण या आलोयणया" त्या-- ટીકાર્થ–આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું કે-જે સંવેગ વિગેરે પદ છે તે સાર્થક છે. કે નિરર્થક છે ? તેની આરાધનાનું અતિમ इस वन शुभजे छ ? "अह भंते ! संवेगे" उ मन् मोक्षनी भनि । ३५ २ ३ छे. "निव्वेए" स साथी वि२४ ३५ २ न छे, गुरु साहम्नियसुस्सूसणया' दीक्षायाय ३५ शु३०० नानी भने से समायाशवाणा सामान्य आधुनानी सेवा३५ शुश्रूषणता "आलोयणा" शु३नी समक्ष सणा होषी प्रगट ४२१। “निंदणया" पोताना हानी पोते नही १२वी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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