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भगवतीसूत्रे माणातिपातादिक्रियायास्त्यागस्तस्मिन् 'जाव परिग्गहवेरमणे' यावत् परिग्रहविरमणे, यावत्पदेन मृपावादादारम मैथुनपर्यन्तस्य संग्रहः 'कोहविवेगे' क्रोध विवेके क्रोधत्यागरूपायां क्रियायामित्यर्थः 'जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे' यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेके, यावत्पदेन मानादारभ्य मायामृषापर्यन्तानां षोडशानां संग्रहः 'वट्टमागस्स' वर्तमानस्य 'अन्ने जीवे अन्यो जीवो देह इत्यर्थः 'अन्ने जीवाया' अन्यो जीवात्मा । अथ बुदिविषये परमतमाह-'उप्पत्तियाए' इत्यादि । 'उपपत्तियाए जाव पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' औत्पत्तिक्या यावत् पारिणामियां यावत्पदेन वैनयिकी कर्मजा च, इत्यनयोग्रहणं पद से मृषावाद से लेकर मैथुन पर्यन्त के पापों का ग्रहण हुआ है विरमण शब्द का अर्थ प्राणानिपात आदि क्रियाओं का त्याग करना है। इस प्रकार प्राणातिपातिकी क्रिया के त्याग में, यावत् परिग्रह के त्याग में 'कोह. विवेगे' क्रोध के स्याग में 'जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे' यावत् मिथ्यादर्शनशल्य के त्याग में तथा यावत् पद गृहीत मान से लेकर मायामृषा पर्यत १६ कषायो के त्याग में 'वट्टमाणस्स' वर्तमान देही का अन्ने जीवे' अन्ने जीवाया' जीव-शरीर-अन्य है और उससे जीवात्मा-भिन्न है बुद्धि के विषय में परमत क्या है सो इस बात को सूत्रकार 'उप्पत्ति याए' इत्यादि सूत्र द्वारा प्रकट करते हैं-'उप्पत्तियाए जाव पारिणामियाए वट्टमाणस्म अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया' यहां यावत् पद से वैनयिकी और कर्मजा बुद्धि का संग्रह हुआ है-तथा च औत्पत्तिकी वैनपरिग्गहवेरमणे" मडियां यावत् ५४थी भृषापायी साधन भैथुन सुधाना પાપ ગ્રહણ કરાયા છે વિરમણ શબ્દને અર્થ પ્રાણાતિપાત વિગેરે लियामाना त्या से प्रमाणे छे. "कोहविवेगे" ना त्याममा 'जाव मिच्छादसणमल्लविवेगे" यावत भिथ्याशन शयना त्यामा यावत पहथी भानथी ने भायाभूषा सुधीना सोण पायोना त्यामा "वट्टमाणस्स" २। हीना "अन्ने जीवे अन्ने जीवाया" -शरी२ अन्य छ. अने તેમાં રહેલ જીવાત્મા ભિન્ન છે.
मुद्धिना विषयमा ५२मत शु छ ? थे. पात "उत्पत्तिया" त्यात સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકાર પ્રગટ કરે છે.
"उपात्तियाए जाव पारिणामियाए वद्रमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया" અહિયાં યાવત્ પદથી વૈનાયિકી અને કર્મના બુદ્ધિને સંગ્રહ થયે છે, તેને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨