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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ० २ सू० १ धर्मादिस्थितजीवादिनिरूपणम् ३८३ धर्मेऽपि स्थिताः । 'नेरइया णं पुच्छ।' नैरयिकाः खलु पृच्छा नैरयिकाः किं धर्म स्थिताः अधर्मे स्थिताः धर्माधर्मे वा स्थिताः ? इति प्रश्नः, भगानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया नो धम्मे ठिया' नैरयिकाः नो धर्मे स्थिताः अपि तु 'अधम्मे ठिया' अधर्मे स्थिताः ‘णो धम्माधम्मे ठिया' नो धर्माधर्मे स्थिताः, धर्मले श्यापि तत्रासद्भावात् 'एवं जाव चउरिदियाणं' एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणाम् , एवम् नारकत्रदेव एकेन्द्रियादारभ्य चतुरिन्द्रियजीव पर्यन्तं ज्ञातव्यम् , यथा नैरयिकाः न धर्मे स्थिताः न वा धर्माधर्मे स्थिताः अपि तु अधर्मे स्थितास्तथैव चतुरिन्द्रियान्तम् जीवा न धर्मे स्थिताः न वा धर्माधर्म ____ अब गौतम ! प्रभु से ऐसा पूछते हैं- नेरइया ण पुच्छा' हे भदन्त ! नैरयिक जीव धर्म में स्थित हैं ? या अधर्म में स्थित हैं ? या धर्माधर्म में स्थित हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'गोयमा ! नेरच्या नो धम्मे ठिया, नो धम्माधम्मे ठिया, अधम्मे ठिया' हे गौतम! नैरयिक जीव चारित्ररूप धर्म में स्थित नहीं हैं तथा देशाविरतिरूप धर्माधर्म में भी स्थित नहीं है किन्तु वे अविरतिरूप अधर्म में ही स्थित हैं। क्योंकि इनमें धर्मलेश्या तक का भी अभाव है । 'एवं जोव चारिदियाणं' जैसा कथन यह नारकों के सम्बन्ध में किया गया है इसी प्रकार का कथन एकेन्द्रिय से लेकर चौइन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में भी कर लेना चाहिये। अर्थात् नारक जीव जिस प्रकार से धर्म एवं धर्माधर्म में स्थित नहीं कहे गये हैं, उसी प्रकार से एकेन्द्रिय से चौहन्द्रिय पर्यन्त के जीव भी धर्म एवं धर्माधर्म में स्थित नहीं कहे गये हैं किन्तु नारकों के जैसा केवल वे अधर्म
वे गौतम ! सामी ना२ना विषयमा प्रभुने पूछे छे है-'नेरइयाणं पुच्छा' मावन् ! ना२४ पशुपमा स्थित छ. अममा स्थित छ
घधिममा स्थित छे. तेना उत्तरमा प्रभु ४ छ ?-गोयमा ! नेरइया नो धम्मे ठिया नो धम्माधम्मे ठिया अधम्मे ठिया' के गौतम ! ना२४ीय ०१ ચારિત્રરૂપ ધર્મમાં સ્થિત નથી. તેમજ દેશવિરતિરૂપ ધર્માધર્મમાં પણ સ્થિત હેતા નથી. પરંતુ તેઓ અવિરતિરૂપ અધર્મમાં જ સ્થિત રહે છે. કેમકે तमामा यम श्याना मा छे. 'एवं जाव चउरिदियाणं' पु. ४थन નારકોના વિષયમાં કર્યું છે તેવું જ કથન એકેન્દ્રિય જીવથી લઈને ચાર ઈન્દ્રિયવાળા ના સંબંધમાં પણ કરી લેવું અર્થાત્ નારકજીવ જે રીતે ધર્મ અને ધર્માધર્મમાં સ્થિત હતા નથી તેવી જ રીતે એકેન્દ્રિયથી ચાર ઈન્દ્રિય સુધીના છે પણ ધર્મ અને ધર્માધર્મમાં સ્થિત હેતા નથી.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨