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________________ भगवतीस्त्रे वित्रमया प्रत्यवपततः यावत् पञ्चभिः स्पृष्टाः, अत्र यावत्पदेन 'उवग्गहे वहति ते वि य णं जीवा काइयाए' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति स्वभावत एव पततः कन्दस्य मार्गे स्थावादयः उपग्रहे-प्रेरणे वर्तन्ते तेऽपि जीवाः पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टा भवन्ति, कन्दपतनात् जायमानप्राणातिपात प्रति तेषां साक्षात निमित्तत्त्वादिति फलितार्थः । 'जहा कंदे एवं जाव बीए' यथा कन्दः, एवं यावत् बीजम् , अत्र यावत्पदेन स्कन्धत्वक् शाखापवालपत्रपुष्पफलानां संग्रहो भवति यथैव कन्द विषये षट् स्थानानि कथितानि तथैव स्कन्धादारभ्य बीजपर्यन्तम् मूत्राणि संयोजनीयानि युक्तः प्रकारस्य च सर्वत्र समत्वादितिभाः ।२॥ उपग्राहक हैं-वे जीव भी पांचों ही क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। यहां यावत्पद से 'उवग्हे वति ते वियणं जीवा कइयाए' यहां तक का पाठ गृहीत हुआ है। क्योंकि कन्द आदिकों के गिरने से जायमान प्राणातिपात क्रिया के प्रति उनमें साक्षात् निमित्तता आती है । 'जहा कंदे एवं जाव बीए' जैसा यह क्रिया लगने का कथन कन्द के विषय में कहा गया वैसा ही कथन यावत् बीज में भी कर लेना चाहिये। यहां यावत् पद से स्कन्द, स्वक, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, एवं फल इनका संग्रह हुआ है। तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से कन्द के विषय में ६ स्थान कहे गये हैं। उसी प्रकार से स्कन्ध से लेकर बीज पर्यन्त के सूत्र भी संयोजित कर लेना चाहिये। युक्ति और प्रकार सर्वत्र समान है ॥सू०२॥ પ્રત્યે જે ઉપગ્રાહક હેય છે. તે જીવો પણ પાંચે કિયાઓથી પૃષ્ટ થાય છે. मडियां यावत् ५४थी "उठवग्गहे वहति ते वि य गं जीवा काइयाए" माह સુધીને પાઠ ગ્રહણ થયે છે. કેમ કે કંદ વિગેરેને પડવાથી થવાવાળી प्रातिपात यामा तसा निमित्त ३५ हाय छे. "जहा कंदे एवं जाव बीए" व रीते मा यि anानु न ना विषयमा युछे. ते જ કથન બીજના વિષયમાં પણ સમજવું. અહિયાં યાવત્ પદથી કંદ (१४, (a) शमा (14) प्रवास (पत्र) ०५२ ३० मे १ थया है. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જે પ્રકારે કંદના વિષયમાં છ સ્થાને (પ્રકારે) કહ્યા છે. તેજ રીતના છ સ્થાને કંધથી લઈને બીજ પર્યતમાં પણ સમજવા યુક્તિ અને પ્રકાર બધે સરખા છે. એ સૂત્ર ૨ ૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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