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________________ ३५० - - भगवतीसूत्रे भंते ! हत्थिराया' भूतानन्दः खलु भदन्त ! हस्तिराजः भूतानन्दनामकः कुणिक राजस्य प्रधानहस्ती 'कओहितो अणंतरं उघट्टित्ता' कुतोऽनन्तरम् उद्वयं भूणा. गंदहत्थिरायत्ताए०' भूतानन्दहस्तिराजतया उत्पन्नः । इत्यादि भूतानन्दस्याती. तानागतभवविषयको गौतमस्य प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'एवं जहेव उदायी जाव अंतं काहिई एवं यथैव उदायी यावदन्तं करिष्यति हे गौतम! यथा उदायिहस्तिराजस्य वक्तव्यता तथा भूतानन्दस्यापि वक्तव्या यावदन्तं करिष्यतीति पूर्व भूतानन्दोऽसुरकुमार आसीत् तदनन्तरं ततश्चयुत्वा भूतानन्दहस्विराजो जातः अत्रतो मृत्वा नरके यास्यति ततो नरकानिर्गत्य महाविदेहक्षेत्रमासाध ज्ञानाचाराधनं कृत्वा सेत्स्यति भोत्स्यते मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति चेति समुदितार्थः ॥सू० १॥ भदन्त ! कुणिकराजा का दूसरा हस्तिराजभूतानन्द है वह 'कभोहितोअण. तरं उव्वट्टित्ता भूयाणंदहस्थिरायत्ताए०' कहां से च्युत होकर भूतानन्द इस्तिराज की पर्याय से उत्पन्न हुआ है ? इस प्रकार से यह भूतानन्द हस्तिराज की भूतपर्याय विषयक प्रश्न है, इसके उत्तर में प्रभुने कहा 'गोयमा! एवं जहेव उदायी जाव अंतं काहिह' हे गौतम! जैसा स्पष्टीकरण उदायी हस्तिराज के विषय में किया गया है, वैसा ही स्पष्टीकरण भूतानन्द हस्तिराज के विषय में भी जानना चाहिये। यावत् वह समस्त दुःखों का विनाश करेगा इस प्रकार वह भूतानन्त भी पहिले असुरकुमार देव था वहां से च्युत होकर वह अब भूतानन्त हस्तिराज की पर्याय में है इसके बाद वह मरकर के नरक में जावेगा, फिर नरक से निकल कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म धारण कर वहीं से ज्ञानादिक की आराधना भीन्ने साथी २ भूतान छे. ते "कओहितो अणंतर उठवट्टित्ता भूयाणंद हत्थिरायत्ताए०" यांथी यवी२ भूतान हथिनी पर्यायथी उत्पन्न थये। छे. तेना उत्तरमा प्रभु ४ छ ? “गोयमा एवं जहेव उदायी जाव अंतं काहिइ" હે ગૌતમ ઉદાયી હાથીરાજના વિષયમાં જેવું વર્ણન કર્યું છે. એ પ્રમાણેનું સઘળું વર્ણન ભૂતાનંદ હાથીના વિષયમાં પણ સમજવું. યાવત્ તે સમસ્ત દુઃખે અંત કરશે. આ રીતે તે ભૂતાનંદ હાથી પણ અસુરકુમાર દેવ હતે. ત્યાંથી તે નીકળીને ભૂતાનંદ હાથિપણાને પામ્યો છે. અને ત્યાંથી કાલ કરી. તે નરકમાં જશે. અને પછી તે નરકથી નિકળીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં જન્મ લેશે. અને ત્યાંથી જ્ઞાનાદિકની આરાધના કરીને સિદ્ધ થશે, બુદ્ધ થશે. મુક્ત થશે, ને પરિવનિત થશે. અને સમસ્ત દુઃખોને નાશ કરશે. જે સુ ૧ | શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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