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________________ भगवतीसूत्रे विहार पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छ।' इत्यादि । 'जाव आयरक्खा' यावदात्मरक्षकाः, इह यावत्पदेन अभिषेकोऽलंकारग्रहणं पुस्तकादिवाचनं सुधर्मसभाममनं तत्रस्थस्य तस्य सामानिका अपमहिष्यः पर्षदोऽनीकाधिपतय आत्मरक्षकाच पार्श्वतो निषीदन्तीति सर्व वाच्यम् । एतद्विषयकमूत्रातिदेशमाह-'सव्वं तहेव निरवसेसं' सर्व तथैव निरवशेषम् । सर्वथा साम्यता परिहारार्थमाह-'नवरं' इत्यादि । 'नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता' नवरम् विशेषस्त्वयं सातिरेकं सागरोपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, अयं भावः चमरस्य सागरोपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता बलेस्तु सातिरेकं सागरोपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता इति वक्तव्यम् 'सेस तं चेव जाव बली वइरीयशिंदे बली वइरोयर्णिदे' शेष तदेव यावत् बलिवैरोचनेन्द्रो बलिवैरोचनेन्द्रः । रोयणिदे अहुणोववन्नमेत्तए समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पजत्तिभावं गच्छई' इत्यादि । 'जाव आयरक्खं' के इस यावत्पद से अभिषेक, अलंकार ग्रहण पुस्तकादिका वाचन सुधर्मासभा में गमन, वहां बैठ जाने पर इसकी दोनों ओर सामानिकों अग्रमहिषियों० परिषदों अनीकाधिप. तियों एवं आत्मारक्षकों का बैठ जाना 'यह सब कथन कर लेना चाहिये ऐसा कहा गया है यही बात 'सव्वं तहेव निरवसे सं' इस सूत्र द्वारा समझाई गई है। इस कथन में जहां अन्तर है वह 'नवरं सातिरेगं सागरोवर्म ठिई पन्नत्ता' इस सूत्र द्वारा प्रकट किया गया है। इसमें यह कहा गया है कि चमर की स्थिति एक सागरोपम की कही गई है-तब कि बलि की स्थिति एक सागरोपम से कुछ अधिक कही गई है। सेसं तं चेव जावबली वारोयणिदे बली वहरोयणिदे' बोकी का और सब कथन ये वैरोचनेन्द्र पलि हैं, ये वैरोचनेन्द्रबलि है यहां तक के पूर्वोक्त कथन के "तेण कालेणं तेणं समएणं बली वइरोयर्णिदे अहुणोवषण्णमेत्तए समाणे पंच बिहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ--इत्यादि जाव आयरक्खं" मा यापत ५४ा અભિષેક, અલંકાર ગ્રહણ પુસ્તક વિગેરેનું વાંચન, સુધર્માસભામાં ગમન, અને ત્યાં બેઠા પછી તેની બંને બાજુ સામાનક દેવ અમહિષીઓ અનીકાધિપતી એ અને આત્મરક્ષકનું બેસી જવું આ સઘળું કથન સમજવું. એજ वात "सव्वं तहेव निरवसेसं" सूत्र द्वा२॥ ४युं छे. मे ४थनमा २ विशेषता छ. ते "नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता” से सूत्रथा પ્રગટ કરી છે. આમાં એ પ્રમાણે કહ્યું છે કે અમરની સ્થિતિ એક સાગરોપમ કહી છે અને બલિની સ્થિતિ એક સાગરોપમથી જાજેરી કહી છે. "सेसं तं चैव जाव बलिवइगेयगिंदे बलीवइरोयणिंदे" माडीनु भा तमाम શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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