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________________ १४ भगवतीस्त्र प्रज्ञमा तत्पमाणमाह-'एगं जोयणसयसहस्सं पमाणं तहेव' एकं योजनशतसहस्रं प्रमाण तथैव यथा चमरचञ्चायाः प्रमाण तथा बलिचश्चाया अपि तथाहि'एगं जोयणसयसहरसं आयामविक्खभेणं' एकं योजनशतसहस्रमायामविष्कम्भेन तत्र द्वितीयशतकस्याष्टमोद्देशके प्रोक्तम्-'जंबूदीवप्पमाणा' सा राजधानी जम्बूद्वीपप्रमाणा वर्तते, तच्च प्रमाणं यथा-'तणि जोयणसयसहस्साईसोलसय सहस्साइ दोनि य सत्तावीसे जोयणसए तिनिय कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरसयअंगुलाई अदंगुलयं च किंचि विसे साहियं परिक्खेवेणं पण्णत्त' त्रिणि योजनशतसहस्राणि षोडशसहस्राणि द्वे च सप्तविंशे योजनशते त्रयः कोशाः करने पर ठीक इसी स्थान पर वैरोचनेन्द्र वैरोचन राज बलिकी 'बलि चंचा नामं रायहाणी पन्नत्ता' बलिचचा नाम की राजधानी कही गई है। 'एग जोयणसयसहस्सं पमाणं तहेव जाव बलिपेढस्स' इस बलिचंचा राजधानी का प्रमाण एक लाख योजन का है । चमर की राजधानी का भी प्रमाण इतना ही है । इसका प्रमाण कहनेवाला पाठ इस प्रकार से है-'एगं जोयणसयसहस्सं आयाम विवखंभेणं' अर्थात् चमरचंचा राजधानी का प्रमाण आयाम और विष्कम्भ की अपेक्षा १ लाख योजन का है। वितीयशतक के अष्टम उद्देशक में 'जम्बूद्दीवपमाणा' ऐसा कहा है । सो यह राजधारी जंबूद्वीप के बराबर है। वह प्रमाण इस प्रकार से है-'तिषिण जोयणसयसहस्साई सोलसयसहस्साइंदोनि य सत्तावीसे जोयणसए तिनि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसंयं तेरसय अंगुलाई अद्धंगुलयं च किंचि विसेसाहियं परिक्खेषेण स्थान ५२ वैशयनेन्द्र वैशयन। मलिनी "बलिचंचानामं रायहाणी पण्णता" मलिया नामनी मतिनी यानी डावानु पर्दा छ, “एगं जोयणमयसहस्सं पमाणं तहेव जाव बलिपेढस्स" मा मलिया यानानु प्रमाण से લાખ એજનનું છે. અમરેન્દ્રની રાજધાનીનું પ્રમાણુ બતાવનાર પાઠ આ प्रमाणे छ. "एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं" अर्थात यमरनी २. ધાનીનું પ્રમાણ આયામ લંબાઈ અને વિષ્કભ પહોળાઈની અપેક્ષાએ જ એક साम यातनु छ. भील शतना मामा देशमा "जम्बूद्वीपप्रमाणा" એવું કહેલ છે, તેથી આ રાજધાની જંબુદ્વીપની બરોબર જબૂદ્વીપ સંબંધી प्रभार । प्रमाणे छ-तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साई दोनि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्निय कोसे अट्ठावीस धणुसयं तेरसयअंगुलाई अद्धगुलयं च किचिविसेसाहिंय परिक्खेवेण पण्णत्तं' 3 साथ १६ सपन२ २ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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