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________________ ३०८ --- भगवतीस्त्रे तिगिच्छकूटस्य यथा चमरस्य द्वीतीय शतकाष्टमोदेश के तिगिच्छकूटपर्वतस्य प्रमा. णमुक्तम् तथैव बलिसम्बन्धिरुव केन्द्रपर्वतस्य प्रमाणं ज्ञातव्यम् तथा च-'चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं चउब्धिहे गं' चत्वारि त्रिंशत्योजनशतानि क्रोशश्व उद्वेधेन त्रिंशदधिकानि चतुःशतानि, तदुपरि एकः क्रोशश्च उद्वेधेन गम्भीरत्वेन भूम्यन्तर्गतत्वेनेत्यर्थः 'गोत्थुमस्स आवासपव्ययस्स पमाणेण णेयवं' गोस्तुभस्यावासपर्वतस्य प्रमाणेन ज्ञातव्यम् । गोस्तुभाभिधावासपर्वतपरिमाणतुल्यमस्यापि प्रमाणं ज्ञातव्यम् 'नवरं उवरिल्लं पमाणं माझे भाणियव्वं' नवरम् उपरितनं प्रमाणं मध्ये भणितव्यम् विशेषः केवलमयम् यत् गोस्तुभपर्वतस्य यदुपरितनं प्रमाणं तत् मध्ये कथितव्यम् इति अथोत्पातपर्वतस्य परिमाणं प्रदर्शयति-'मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं मज्झे चत्तारि चउबीसे जोयणसए विखंभेग, उरि सत्ततेवीसे जोयणसर विखंभेणं, मूले विणि जोयणछछडस्त' इसका यह प्रमाण तिगिच्छकूट नामके उत्पातपर्वत के अनु. रूप कहा गया है । यह तिगिच्छकूर नामका उत्पात पर्वत चमर का है। तथा च 'चत्तारि तीसे जोयणसए कोस चउब्वेहेणं' यह रुचकेन्द्र नामका पर्वत उद्वेध की अपेक्षा ४३० योजन और एक कोश का है। उमेध का तात्पर्य है कि यह पर्वत भूमि के भीतर इतना गहरा गया हुआ है । 'गोत्थुभस्स आवासपव्वयस्त पमाणेण णेपव्वं 'इस पर्वत का यह माप गोस्तुभनामक आवासपर्वत के माप जैसा है। 'नवरं उरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियब्वं' विशेषता केवल यहां ऐसी है कि गोस्तुभ के ऊपरी भाग का जो प्रमाग है वह प्रमाण यहां बीच के भाग का जानना चाहिये। इसी बात को स्पष्ट करने के लिये 'मूले दसषावीसे जोयणसए विक्खंभं मज्झे चत्तारि चउवीसे ५'तारेभ छे. तभ०४ "चत्तारि तीसे जोयणसए कोसंच उठवेहेणं" । ચકેન્દ્ર નામને પર્વત ઉધની અપેક્ષાએ “૪૩૦' જન અને એક કેશ છે. ઉધનું તાત્પર્ય એ છે કે આ પર્વત જમીનની અંદર એટલે ઊંડે छ. "गोत्थुभस्म आवासपञ्चयस्म पमाणेण णेयव्वं" मा २यन्द्र पतन भा५ गतुमनामना मावासप तन। भा५ प्रमाणे छ. "नवरं उवरिल्लं पमाणं मझे भाणियवं" विशेषता ११ मडिया से छे गस्तुलना ઉપરના ભાગનું જે પ્રમાણ છે. તે પ્રમાણ અહિયાં વચલા ભાગનું समयानु छ । पातन २५८ ४२वाने भाट “मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभं मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं उवरि सत्ततेवीसे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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