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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ० ६ ० ४ स्वप्नफलनिरूपणम् २४७ विमानारूढमात्मानं जानाति 'तकखणामेव बुज्झई' तत्क्षणमेव बुद्धयते 'तेणेव जाव अंतं करेइ तेनैव यावदन्तं करोति । स स्वप्नद्रष्टा तेनैव भवेन यस्मिन् भवे स्वप्नो दृष्टस्तस्मिन्नेव भवे सिध्यति बुध्यते मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखा. नामन्तं करोतीति भावः ॥ मू० ४ ॥ चाहे स्त्री हो या पुरुष हो-वह यदि स्वप्न के अन्त में एक विशाल सर्वरत्नमय विमान को देखता है और देखकर अपने को ऐसा मानता है कि मैं इस पर चढ रहा हूं या चढ़ चुका हूं (तक्खणामेव बुज्झइ, तेणेव जाव अंतं करेइ) ऐसा मानता हुआ वह व्यक्ति यदि उस समय जग जाता है, तो वह उसी भवसे यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है। इस सूत्र में जो 'हयपति' इत्यादिरूप से पंक्तिशब्द का प्रयोग किया गया है वह इस बात को सूचित करता है कि एक अश्व के दर्शन से ऐसा महत्फल नहीं होता है। 'जाव वसभपतिं वा' में जो यावत् पद आया है। उससे यहां 'णरपंति वा, किंनरकिंपुरिसमहोरगगंधज्वपति वा इन पदों का संग्रह हुआ है । 'तक्खणामेव बुज्झई' ऐसा जो कहा गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि पुनःशयन से विलक्षण फल प्राप्ति का अभाव हो जाता है। ऐसा ही कहा गया है विवेकीपुरुषः स्वप्न, इत्यादि-- 'तेणेष भवग्गहणेणं' में उसी भवग्रहण से यह सिद्ध हो जाता હોય તે જે સ્વપ્નને અંતે એક વિશાળ સર્વ રત્નવાળા વિમાનને જુએ અને જોઈને પિતાને તેના પર ચઢતે હોય તેમ માને અગર ચઢી ચુક डाय तेभ माने भने 'तक्खणामेव बुझइ वेणेव जाव अंत' करेइ' | प्रमाणे માનતી તે વ્યક્તિ જે તે જ સમયે જાગી જાય છે, તે તેજ ભવમાં મુકતા થાય છે. યાવત્ સમસ્ત દુઃખેને અંત કરે છે. ___ मा सूत्रमा २ 'हयपति' इत्यादि ३५ पडत शनी प्रयोग કરવામાં આવ્યું છે. તે એ વાત બતાવે છે કે એક ઘડાને જેવાથી તેરીતના जनी प्राप्ती यती नथी. 'जाव वसभपंति वा से पायम २ यावत् शण्ड भाव्य। छ तथा महियां "णरपति वा किनर किंपुरिसमहोरगगंधवपति वा' मा पहानी 8 थयो छे. 'तक्खणामेव बुम्झइ' प्रमा२ अपामा मा०यु છે. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે જે ફલ પ્રાપ્ત થવાનું કહ્યું છે તે સ્વપ્નથી જાગીને श सुजय ते ३१ प्राप्त थ नथी तथा ४ घुछ 3-'विवेकी पुरुषः स्नप्न' या 'तेणेव भवग्गहणे ण' मे पायम ते अथीते व्यति सिद्ध શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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