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________________ भगवतीसूत्रे वायुकायः समुत्पद्यते इति । अयं चोत्पत्तिसमये अचेतनोषि पश्चात् सचेतनो भवतीति भावः । यस्योत्पत्तिर्भवति तस्य मरणमप्यवश्यंभावि उत्पत्तेर्मरणसहचरितत्वादतस्तन्मरणविषये गौतमः पृच्छति 'से भंते' इत्यादि, 'से भंते किं पुढे उद्दाइ, अपुढे उद्दाई' स भदन्त किं स्पृष्टअपद्रवति म्रियते किम् अस्पृष्ट अपद्रवति म्रियते ? स्पृष्टः स्वजातीयस्पर्शात् शस्त्रादिस्पशा अपद्रवति म्रियते अथवा अस्पृष्ट एवं शस्त्रादिना म्रियते इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम! 'पुढे उद्दाह नो अपुढे' स्पृष्ट अपद्रवति नोडस्पृष्ट: 'से भंते कि ससरीरी निक्खसे पीटा जाता है, तब उस पीटने से उस अधिकरणी के ऊपर वायुकाय उत्पन्न हो जाता है। तात्पर्य कहने का यह है कि वह वायु वहां उत्पत्तिसमय में अचित होता है फिर वह सचित हो जाता है अर्थात् हथौडा से लोहे आदि को पीटते समय जो वायु उत्पन्न होता है वह पहले अचेतन अवस्था में रहा हुआ वायुकाय फिर सचेतना हो जाता है। जिसकी उत्पत्ति होती है उसका मरण भी अवश्य होता है अतः इसी बात को लेकर गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से भंते ! किंपुढे उद्दाह, अपुढे उद्दाह' हे भदन्त ! वह वायुकाय स्वजातीय के स्पर्श से अथवा शस्त्रादिके स्पर्श से मरता है कि उनके स्पर्श किये बिना ही मर जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुने कहा- 'गोयमा ! पुढे उद्दाइ, नोअपुढे' हे गौतम! वह शस्त्रादि द्वारा स्पष्ट होने पर ही मरता है विना स्पृष्ट हुए नहीं मरता વીગેરેને જ્યારે હથેાડાથી ટીપવામાં આવે છે ત્યારે તે અધિકરણી (એરણુ) ઉપર વાયુકાય ઉત્પન્ન થાય છે. તાત્પર્યં કહેવાનું એ છે કે તે ટીપવાથી ઉત્પન્ન થયેલે વાયુ ઉત્પત્તિ સમયે અચિત્ત હાય છે પછી તે સચિત્ત થઈ જાય છે. અર્થાત્-હથેાડાથી લાખડ વીગેરેને ટીપતી વખતે જે વાયુ ઉત્પન્ન થાય છે તે વાયુથી તે અચેતન અવસ્થામાં રહેલ વાયુકાય ફરી સચેત બની જાય છે. જેની ઉત્પત્તિ થાય છે તેના નાશ પણ હમેશાં થાય છે જેથી क्षेत्र वातने उद्देशीने गौतम स्वामी प्रभुने मेवु छे छे -' से भंते! किं पुढे उद्दाइ, अपुट्ठे उहाई " से लगवन् ! ते वायुप्राय शु स्वन्नतीयना स्पर्शथी અથવા શસ્રદીના સ્પથી મરે છે ? અથવા તેના સ્પચ થયા વિના જ મરે छे? या प्रश्नना उत्तरमा अलु उडे छे हैं-" गोयमा ! पुढे उद्दाइ, नो अपुढे " હું ગૌતમ ! તે વાયુકાય શાદી દ્વારા સ્પુષ્ટ થાય ત્યારે જ મરે છે. પૃષ્ઠ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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