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________________ १८२ भगवतीसूत्रे डीए जाव णादितरवेणं' सर्वद्धर्या यावद् नादितरवेण, अत्र यावत्पदेन 'सत्र ज्जुईए सबबलेणं सबसमुदएणं महया वरतुडियजमगसमगप्पवाइएण संखपणवपटहभेरीझल्लरीखग्मुहीहुडुकमुखमुइंगदुंदुहिणिग्योस' इति संग्रामम् छाया-सर्वद्युत्या सर्वबलेन सर्वसमुदायेन महता वरत्रुटितयमकसमकपवादितेन शङ्खपणवपटहभेरीझल्लरीखरमुखी हुडुकमुरजमृदङ्गदुन्दुभिनिर्घोष इति । 'हत्थिमापुरं मझं मज्झेण णिग्गच्छई' हस्तिनापुर मध्यं मध्येन निर्गच्छति 'णिग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे' निर्गत्य यत्रा सहस्राम्रवनमुद्यानम् 'तेणेव उआगच्छई' तत्रै उपागच्छति 'उबागच्छित्ता' उपागत्य 'छत्ताइए तित्थगरातिसए' पासई' छत्रादिकान् तीर्थकरातिशयान् पश्यति 'एवं जहा उदायणो नाव सयमेव आभरणे ओमुयई' एवं या उदायनो यावत् स्वयमेव आभरणानि अबपीछे २ चल रहे थे। 'सब्धिड्डीए जाच णादितरवेणं' यह अपने पूर्ण वैभव के साथ एवं यावत् बाजों की तुमुल ध्वनि के साथ चलता था। यहां यावत्पद से 'सधज्जुईए सव्ववलेण,सबसमुदएणं महया वरतुडिय जमगसमगपवाइएणं संखरणवपडह, भेरी, झल्टरी, खरमुही, हुडुक्क, मुरज, मृदङ्ग, दुन्दुभि निर्घोष' इस पाठका ग्रहण हुआ है। 'हस्थिणापुर मा मज्झेणं णिग्गच्छइ' इस प्रकार के ठाठबाट से यह दीक्षा लेने के लिये हस्तिनापुर के बीच के मार्ग से होकर निकला। 'णिग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उजाणे निकलकर वह वहां पहुंचा कि जहां पर वह सहस्राम्रचन नामका उद्यान था। 'उवागच्छित्सा' वहां पहुंचते ही उसने 'छत्ताइए तित्थगरातिसए पासइ' तीर्थकर प्रकृतिके अतिशयभून छत्रादिकों को देखा । 'एवं जहा उदायणो जाव सयमेव आभरणे ओमुयई' देखते ही उसने उदायन राजा के जैसा यासत तो मडियां यातू ५४थी “ सव्वज्जुईए, सव्वबलेण, सव्वसमुदएणं, महया वरतुडि यजमगसमगप्पवाइएणं संखपणवपटहभेरीजल्लरीखरमुहीहुडुक्का मुरजमुदंगदुदिहिणिग्घोस" या पानी सड ये छे. मन તે સઘળા વાજાઓના અવાજ તેની પાછળ થઈ રહ્યા હતા. આવી शतना 13418थी "हत्थिणापुरं मज्ज मज्जेणं णिग्गच्छइ" ते हस्तिनापुरना १२येवियना मागेथी दीक्षा सेवा भाट नीजये.. “णिगच्छिता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे" यां सखापन नामनु Gधान हेतु त्यो त ५ । " उवागच्छिता" त्या ५डयाने तेणे " छत्ताइए तित्थगरातिसए पासइ" तीथ ४२ प्रातन अतिशय३५ छाने तेथे ६२थी नया “ एवं जहा उदायणे जाव सयमेव आभरणे ओमुयइ" छत्राहिने न त हायन शनी मा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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