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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १६ उ०५ १०२ शकेन्द्रविषयकप्रश्नस्पष्टीकरणम् १४१ समाननामकविमाने 'दो देवा महड्रिया जाव महासोक्खा' द्वौ देवौ महर्द्धिको यावद् महासौख्यौ यावत्पदेन 'महज्जुइए महाबले महाजसे' एतेषां सङ्ग्रहः 'एगविमाणसि देवत्ताए उववन्ना' एकस्मिन् विमाने देवतया उत्पन्नौ 'तं जहा' तद्यथा 'मायिमिच्छादिविउववन्नए य' मायी मिथ्यादृष्टयुपपन्नकश्व, 'अमायि सम्मदिहि उक्वन्नए य' अमायि सम्यग् दृष्टयुपपन्नकश्च 'तए णं से मायिमिच्छादिट्ठि उपवनए देवे' ततः खलु स मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नको देवः 'तं अमायि सम्मदिहि उववन्नगं देवं एवं क्यासी' तममायिसम्यगृदृष्टयुपपन्नकं देवम् एवम् वक्ष्यमाणप्रकारमवादीत् । किमुक्तवान् पूर्वो देवोऽपरं देवं तत्राह-'परिणममाणा पोग्गला नो परिणया' परिणममानाः पुद्गलाः, नो परिणताः, अपि तु 'अपरिणया' कप्पे महासमाणे विमाणे' महाशुक्र कल्प में महासमाननामक विमान में 'दो देवा महडिया जाव महासोक्खा' महर्द्धिक यावत् महासौख्य सुख संपन्न दो देव 'एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना' एक विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए हैं, यहां यावत् पद से 'महज्जुइए महाषले महाजसे 'इन पदोंका संग्रह हुआ है। 'तं जहा-मायिमिच्छादंटि उववन्नए य, अमायिसम्मादिहि उववन्नए य' इनमें एक मायी मिथ्यादृष्टि देव उत्पन्न हुआ है, एक अमायीसम्यग्दृष्टि उपन्नक देव है। 'तए णं समायिमिच्छादिहि उववाए देवे' उस मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक देवने 'त अमायी सम्मादीटिं उबवन्नगं देवं एवं वयासी' उस अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक देव से ऐसा कहा-'परिणममाणा पोग्गला नो परिणया' परिणाम को प्राप्त करते हुए पुद्गल परिणत नहीं कहे जाते हैं, अपितु वे 'अपरिणया' अपरिणत ही कहे सरके कप्पे महासमाणे विमाणे" माशु ४६५मां महासभान नामना विभा. नभा " दो देवा महढिया जाव महासोक्खा " महाद्विा याक्तू महासुभ. पाणामे व " एगविमाणंसि देवत्ताए उववना" : विमानमा १ ३५थी उत्पन्न या छे. मडिया यावत् ५४थी “ महज्जुइए महाबले महाजसे" या पहाना स अ यया छ. 'तं जहा-मायिमिच्छादिदि उववण्णए य अमायिसम्मा. दिदि उववन्नएय" तेमां से मायि भाष्टिवाणे हे अत्यन्न थयो छ. मन मे समाया सभ्यष्टिवाने व अपन्न थयेछे. “तए णं से मायि. मिच्छादिदि उबवन्नर देवे" तत्पन्न थयेसा माथामिथ्यावृष्टि देव "तं अमाथि सम्मादिदि उबवन्नग' देव एवं क्यासी" ते माया सभ्य दृष्टि उत्पन्न थयेसा ने ! म घु-" परिणममाणा पोग्गला नो परिणया" परिएतान पास ४२ना२। पुरस, परिणत 3ात नथी परत “अपरिणया" ५५. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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