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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २२ गोशालकगतिवर्णनम् ८६१ भवे शस्त्रवध्यः सन् यावत् दाहव्युत्क्रान्त्या कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयमपि वारम् तृतीयायां वालुकापभायां पृथिव्याम् उत्कृष्टकालस्थितिके नर के नैरयिक तया उत्पत्स्यते, स खलु ततोऽनन्तरम् उद्धृत्त्य द्वितीयमपि वारम् पक्षिषु उत्पत्स्यते, 'जाव किच्चा दोच्चाए सकरप्पभाए जाव उबट्टित्ता सरीसवेसु उववज्जिहिइ' यावत्-स खलु तत्र-पक्षिमवेषु शस्त्रवध्यः सन् दाहव्युत्क्रान्त्या कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयस्यां शर्करामभायां पृथिव्याम् यावत्-उत्कृष्ट कालस्थिति के नरके नरयिकतया उत्पत्स्यते, स खलु ततोऽनन्तरम् उद्धृत्त्य सरीसृपेषु-गोधा कच्छपादिषु उत्पत्स्यते 'तत्य वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोचंपि दोच्चाए सकरपभाए जाव उव्वद्वित्ता दोच्चंपि सरीसवेसु उववजिहिइ' तत्रापि खलु सरीसृपभवे शस्त्रवध्यः सन् यावत्-दाहव्युत्क्रान्त्या-दाहोत्पत्त्या कालमासे कालं कृत्वा व्युत्क्रान्ति से कालमास में काल कर द्वितीय वार भी तृतीय चालुका प्रभा पृथिवी में उत्कृष्टकाल की स्थितिवाले नरकावास में वह नारक की पर्याय से उत्पन्न होगा। फिर वह वहां से मर कर अनन्तर समय में ही दुवारा पक्षियों में उत्पन्न होगा, 'जाव किच्चा दोच्चाए सकरप्पभाए जाव उव्वहिता सरीसवेसु उववज्जिहिई' यावत्-वह पक्षिभवों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की व्युत्क्रान्ति से कालमास में काल करके द्वितीय शर्कराप्रभापृथिवी में उत्कृष्टकाल की स्थितिवाले नरकावास में नारक की पर्याय से उत्पन्न होगा। फिर वह वहां से निकल कर अनन्तर समय में ही गोधा, कच्छप आदि कों में उत्पन्न होगा, 'तस्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चे पि दोच्चाए सकरप्पभाए जाव उच्चहित्ता दोच्चपि सरीसवेसु उववज्जिहिइ' वहां पर भी वह शस्त्र. वध्य होकर यावत् दोह की व्युत्क्रान्ति से-दाह की उत्पत्ति से कालमास થઈને, કાળને અવસરે કાળ કરીને તે ફરી ત્રીજી વાલુકાપ્રભા પૃથ્વીમાં ઉત્કૃષ્ટકળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે. ત્યાંથી નીકળી शथी त पक्षिामा Gun 22 " जाव किच्चा दोच्चाए सक्करप्पभाए जाव उठवट्टित्ता सरीसवेसु उववज्जिहिइ" ते पक्षी सभi तेन शख વધ થશે અને દાહની પીડાથી કાળ કરીને તેને જીવ બીજી શરાપ્રભા પૃથ્વીમાં ઉત્કૃષ્ણકાળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે. ત્યાંથી नजान त यि, आयमा मा ३ जपन्न थरी. “तत्थ विण सस्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चे वि दोच्चाए सक्करप्पभाए जाव उव्वट्टित्ता दोच्चंपि सरीसवेसु उववज्जिहिइ" ते मम ५५ तना थी १५ वाथी होना શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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