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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २१ गोशालकगतिवर्णनम् ८३१ अवहसिहिइ, अप्येगहए निच्छोडेडिइ, अप्पेगइए निमच्छेहिइ, अप्पेगइए बंधेहिइ, अप्पेगइए णिरूंभेइ' अप्येकान् निग्रन्थान् आक्रोशयिष्यति-निन्दिष्यति, अप्ये कान् निग्रन्थान् अाहसिष्यति, अप्येकान् निश्छोटायेष्यति-धिकरिष्यति, अप्येकान् निर्भर्त्सयिष्यति, अप्येकान् भन्स्यति-बन्धयिष्यति, अप्येकान् निरोत्स्पतिनिरोधयिष्यति, 'अप्पेगइयाणं छविच्छेदं करेहिइ' अप्ये केषां छविच्छेदम्आकृतिभङ्ग करिष्यति, 'अप्पेगइए पमारेहिह, अप्पेगइए उद्दवेहिइ' अप्येकान् प्रमारयिष्यति अपयेकान उपद्रविष्यति, 'अप्पेगइयाणं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुच्छणं आञ्छिदिहिइ, विच्छिदिहिइ, भिंदिहिइ, अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं वोच्छिदिहि' अपेकेषां वस्त्रं प्रतिग्रह-पात्रं कम्बलं पादपोच्छनम् आच्छेत्स्यतिआउसेहिइ, अप्पेगइए अवहमिहिइ' अप्पेगहए निच्छोडेहिइ, अप्पेगइए निभच्छेहिइ, अप्पेगइए बंधेहिइ, अप्पे गइए गिरंभेइ' वह कित. नेक श्रमण निर्ग्रन्थों की निन्दा करेगा, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों की हँसी मजाक करेगा अथवा उनका अपहार करेगा, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों को वह धिकार देगा, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों की वह निर्भर्त्सना करेगा, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों को यांचेगा, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों को आने जाने में रुकावट डालेगा। 'अप्पेगइयाणं छविच्छेदं करेहिई' कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों के शरीरावयवों का वह छेद करेगाउनकी आकृति का भंग करेगा । 'अप्पेगइए पमारेहिई' कितनेक श्रमण निग्रन्थों को वह मारेगा । 'अप्पेगहए उहवेहिइ' कितनेक श्रमण निग्रन्थों के साथ वह उपद्रव करेगा । 'अप्पेगइयाणं वत्थं पडि. ग्गह, कंबलं, पायपुंछणं आछिदिहिह, विछिदिहिर' भिदिहिइ, अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं वोधिदिहिइ' कितनेक श्रमण निग्रन्थों ४२. "अप्पेगइए आउसेहिइ, अप्पेगइए अवहमिहिइ, अप्पेगइए, निच्छोडेहिइ, अप्पेगइए निभच्छेहिइ, अप्पेगइए बंधेहिइ, अप्पेगइए णिरंभेइ" ते ८ श्रम નિશ્રાની નિંદા કરશે કેટલાક શ્રમણ નિર્ગથેની હાંસિ ઉડાવશે-પરિહાસ કરશે. કેટલાક માને તે ધિક્કા૨શે, કેટલાક નિગ્રંથની નિભટ્સના કરશે, કેટલાક શ્રમણ નિગ્રંથને બાંધશે, કેટલાક શ્રમણ નિર્ગ“થેની અવરજવરમાં અંતરાઈ २०५२, “अप्पेगइयाण छविच्छेद करेहिइ" 21 श्रम नियानां शरीरन। अवयवोनु छैन ४२, "अप्पेगइए पमारेहिइ" मा श्रम नियाने भारशे "अप्पेगह र उहवे हिइ" ४ श्रम नियाने ५१ ४२शे. "अप्पेगयाणं वत्थं, पडिग्गह, कंबलं, पायपुंछणं आछिंदिहिइ, विछिंदिहिइ, भिदिहिइ, अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं वोर्किदिहिइ" मा श्रम नि थाना पखने, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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