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________________ भगवतीसूत्र पञ्चदशे शतके वसुधारादिपतिपादितम् तथा लब्धं जन्मनीवितफलं जन्मनो जीवितस्य च फलं रेवत्या, लब्धं रेवत्या गृहपल्याजन्मनीवितफलमिति भावः, 'तए णं से सोहे अणगारे रेवईए गाहावइणीए गिहाओ पडिनिक्खमई ततः खलु स सिंहोऽनगारो रेवत्या गाथापनयाः गृहात् प्रतिनिष्कामति-निर्गच्छति, पडि. निक्खमित्ता में ढियगामं नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ' प्रतिनिष्क्रम्य-निर्गत्य, मेण्डिकग्राम नगरमाश्रित्य मध्यमध्येन मध्धमागेन निर्गच्छति 'निग्गच्छित्ता, जहा गोयमसामी भत्तपाणं जाव पडिदंसेइ' निर्गत्य यथा गौतमस्वामी-द्वितीय जीवियफले रेवईए गाहावाणीए रेवईए गाहावइणीए' जैसा इसी पन्द्रहवें शतक में विजय के घर पर वसुधारा आदि का पडना प्रतिपादित किया गया है और विजय ने अपने जन्म और जीवित का फल प्राप्त कर लिया है ऐसा कहा गया है, इसी प्रकार से यहां पर भी गाथापत्नी रेवतीने अपने जन्म और जीवित का फल प्राप्त कर लिया है, ऐसीआकाश में देवताओं ने घोषणा की। 'तए णं से सीहे अणगारे रेवईएगाहावाणीए गिहाओ पडिनिक्खमई' इसके बाद वे सिंह अनगार गाथापत्नी रेवती के घर से बाहर निकले-'पडिनिक्खमित्ता में ढियगामं नया मज्झमज्झेणं निग्गच्छई' बाहर निकल कर में ढिकग्रामनगर के मध्यभाग से होकर चले 'निग्गच्छित्ता जहा गोयमसामी भत्तगाणं जाव पडिदंसेई' चलकर वे प्रभु के समीप आये वहां उन्होंने गौतम स्वामी के जैसा प्रभु को लाया हुआ वह भक्तपान दिखलाया। गौतमस्वामी के यह भक्तपान रेवईए गाहावइणोए, रेवईए गाहावइणीए " भाससमथने पारणे विन्यथा . પતિએ મહાવીર સ્વામીને શુદ્ધ આહારથી પ્રતિલાભિત કર્યા, ત્યારે ધનનીવૃષ્ટિ આદિ જે પાંચ દિવ્ય પ્રકટ થયાં હતાં, એવાં જ પાંચ દિવ્ય રેવતી ગાથાપનીને ત્યાં પણ પ્રકટ થયાં. અહીં એવું દિવ્ય બતાવવામાં આવ્યું - पत्नी रेतीस पातानी सन्म मन छवित साथ यु छ," सेवा हवाये माशमाथी घोष। ४३१. "तए णं से सीहे अणगारे रेवईए गाहावइणीए गिहा ओ पडिनिक्खमइ” यार माह ते सिमसार २१ता थापनान। घरमांधी महा२ नीन्या. “पडिनिक्खमित्ता में ढियगामं नयरं मंझं मझेणं निग्गच्छ" त्यांथी नीजीन मेश्राम नगरना मध्यभागमाथी ५सार च्या. “निग्गच्छित्ता जहा गोयमसामी भत्तपाणं जाव पडिदसे" ચાલતાં ચાલતાં તેઓ કેષ્ઠિક ચિત્યમાં મહાવીર ભગવાનની પાસે આવ્યા. ત્યાં આવીને તેમણે તે આહારપાણી ભગવાન મહાવીરને બતાવ્યાં. બીજા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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