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भगवतीसूत्रे
स्वकेन - निजेन, तेजसा - तेजोलेश्या अन्त्राविष्टः - व्याप्तः सन् अन्ते सप्तरात्रस्य - सप्तरात्रान्ते इत्यर्थः, पित्तज्वरपरिगतशरीरः दाहव्युत्क्रान्त्या दाहज्जरव्याप्या, छद्मस्थ एव - छमस्थावस्थायामेव कालं करिष्यामि - प्राप्स्यामि 'समणे भगवं महावीरे जिणे जिणपळावी जाव जिणसहं पगासेमाणे विहरड, एवं संपे ts' श्रमणो भगवान महावीरो जिनो जिनमलापी यावत्- अर्हन् अर्हत्वलापी, केवली के लिपलापी, सर्वज्ञः सर्वज्ञपलापी, जिनो जिनशब्दं प्रकाशयन् - आत्मनि
या संगमय विरहति-विष्ठति, एवं रीत्या संपेक्षते - विचारयति 'संपे हिता आजीविए थेरे सदावे' संप्रेक्ष्य परामृश्य, आजीविकान स्थविरान् शब्दयति- आह्वयति, ' सदावित्ता उच्चावयसत्रहपाविए करेई' शब्दयित्वाआहूय उच्चावचशपथशापितान् अनेकानेकशपथशापितान् करोति, 'करिता विष्ट - व्याप्त हुआ-सान रात्रि के अन्त में पित्तज्जर परिगत शरीरवाला होकर दाहकी व्युत्क्रान्ति से दाहज्वर की व्याप्ति से छद्मस्थावस्था में ही काल करूंगा 'समणेभगवं महावीरे जिणे जिणप्लावी जाव जिणसद पगासेमाणे विहरह' वास्तव में तो श्रमण भगवान् महावीर ही जिन हैं, जिन प्रलापी हैं, यावत् अर्हन्त अर्हन्तप्रलापी हैं, केवली केवलीपलापी, हैं, सर्वज्ञ सर्वज्ञप्रलापी है, जिन हैं और जिन शब्द के प्रकाशक हैंसार्थ रूप से अपने में जिन इस शब्द के प्रकाशकर्ता हैं । 'एवं संपेहेइ' इस प्रकार से उसने विचार किया। 'संहिता आजीविए थेरे सहावे' इस प्रकार का विचार करके फिर उसने आजीविक स्थविरों को बुलाया सदावित्ता उच्चावयस वहसाविए करेइ' बुला करके उन्हें अनेकानेक शपथों से शापित किया अर्थात् अनेक प्रकार की उन्हें शपथें दिलाई ।
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તેોલેશ્યા દ્વારા અન્યાવિષ્ટ-ભ્યાસ થયેલા એવા હુ` સાત રાત્રિ વ્યતીત થયા બાદ, આ પિત્તજવરયુકત શારીરિક અવસ્થામાં-દાહજવરની વ્યાપ્તિથી છદ્મરથાवस्थामां ०४ आज पुरीश. " समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसहं पगासेमाणे विहरइ " भरी रीते तो श्रमष्णु भगवान महावीर ४ दिन थे, जिन उडेवाने योग्य छे, महुत छे, अडुतप्रसाथी छे, देवसी छे, કેવલિપ્રલાપી છે, સજ્ઞ છે, સ પ્રલાપી છે. તેએ જ યથાર્થરૂપે જિન छे, रमने भिन्न शब्दने सार्थ उरता वियरी रह्या छे. “ एवं संपेहेइ तेथे या प्रभावे विचार अये. "संपेहित्ता आजीविए थेरे सहावेइ, सहा वित्ता उच्चावयववहस विए करेइ, करिता एवं वयासी " विचार पुरीने मालवि સ્થવિરાને ખેલાવ્યા તેમને ખેલાવીને અનેક પ્રકારના શપથ આપીને આ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧