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भगवतीसूत्रे उहाए उढेइ, उठाए उद्वित्ता, गीसालं मंबलिपुत्तं वंदह, नमंसइ, बदित्ता, नमंसित्ता जाव पडिगए' अर्थान् पर्यादाय-गृहीत्वा, उत्थया उत्थानेन उत्तिष्ठति, उत्थया उत्थानेन उत्थाय, गोशालं मङ्खलिपुत्रं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत्-विनयेन पर्युपास्य, प्रतिगतः स्वगृहाभिमुखं गतः । 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते अपणो मरणं आमोएइ, अभोएत्ता आजीदिए थेरे सदावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी' ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रः आत्मनः-स्वस्य मरणम् आभोगयति-जानाति, आमोग्य-स्वस्य मरण ज्ञात्वा आजीविकान् स्थविरान् शब्दयतिआह्वयति, शब्दयित्वा-आहूय एवं-वक्ष्यमाणमकारेण अवादीत्-'तुम्भे ण देवाणुप्पिया ! ममं कालगय जाणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेह' भो देवानुप्रियाः ! करके फिर उसने और प्रश्न पूछे और पूछकर उनके अर्थों को ग्रहण किया-'परियादयित्ता उहाए उट्टे अर्थों को ग्रहण कर के फिर वह अपने
ओप वहाँ से उठा-उठाए उद्वित्ता गोसालं मंखलिपुत्त वंदह, नमसइ, घंदित्ता नमंसित्ता जाव पडिगए' उठकर पुनः उसने मंखलिपुत्र गोशाल को वन्दना की नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके और विनय के साथ उसकी पर्युपासना करके वह वहां से अपने घर की तरफ चल दिया। 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्त अप्पणो मरणं आमोएई' आभो. इता आजीविए थेरे सदावेद सहावित्ता एवं क्यासी' इसके बाद मंखलिपुत्र गोशाल ने अपने मरण का ख्याल किया-ख्याल करके आजीविक स्थविरों को उसने बुलाया-बुलाकर उनसे ऐसा कहा-'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं कालगयं जाणेत्ता सुरभिगा गंधोदएणं पहाणेह' हे તેણે તેમને બીજા પ્રત્રને પણ પૂછયા અને તે પ્રશ્નોના ઉત્તર મેળવ્યા. " परियाइयित्ता उढाए उद्वेइ" त्या२ माह ते पोतानी नते . त्यां से थी. " उट्टाए उद्वित्ता गोसालं मखलिपुतं वंदइ, नमसइ, वंदिता, नम सित्ता जार पडिगए" at तणे भमलिपुत्र सासने २४ानमः४२ ४ा. વંદણા નમસકા૨ કરીને અને વિનયપૂર્વક તેમની પર્યું પાસના કરીને, તે ત્યાંથી पोताना ५२ त२५ यात्री नी . " तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते अप्पणो मरणं आभोएइ, आमोइत्ता आजीविए थेरे सहावेइ, सदा वित्ता एवं वयासी । ત્યાર બાદ મખલિપુત્ર શાલને પિતાનું મરણ થવાને સમય નજીકમાં આવી પહોંચે છે, એ ખ્યાલ આવ્યે ખ્યાલ આવતાં જ તેણે આજીવિક स्यविशन पोताना पासे मेवावी२ मा प्रमाणे यु:-"तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! मम कालगय जाणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेह" वानुप्रियो ! हु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧