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________________ प्रमेयन्द्रका टोका श०१५ उ० १ सू० १२ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६१९ बोन्दिशब्दो देशीयो बोध्यः, 'तत्थ णं जे से सुहुमबोंदिकलेवरे से ठप्पे' तत्रतयोर्द्वयोर्मध्ये खलु योऽसौ सूक्ष्मबोन्दिकलेवर उद्धार उक्तः स स्थाप्यः-स्थापनीयः परित्यक्तव्य इत्यर्थः तस्य निरूपयोगितया विचाराऽनावश्यकत्वात् किन्तु 'तत्थ णं जे से बादरबोदिकलेवरें तो णं वाससए वाससए गएगए एगमेगं गंगावालयं अबहाय' तत्र-तयोर्द्वयोर्मध्ये खलु योऽसौ बादरवोन्दिकलेवर उद्धारः मज्ञप्तः, तस्मात् खलु बादरबोन्दिकलेवरोदारात् वर्षशते वर्षशते गते गते सति एकैकां गंगा बालुकायाम् अपहाय-परित्यज्य, अपहृत्येत्यर्थः, 'जावइएणं कालेणं से कोटे खीणे णीरए निल्लेवे निहिए भवइ सेत्तं सरे सरप्पमाणे' यावता कालेन स कोष्ठः-गजासमुदायरूपः, क्षीणः-रिक्तो भवेत् नीरजा:-बालुका रजाकणरहिता, निर्लेप:-भूमिकूडयादिसंश्लिष्टः सिकतालेपाभावात् , अतएव निष्ठितः-समाप्त:है। यहां योदि' यह शब्द देशीय शब्द है और आकार अर्थ का वाचक है। 'तत्थ ण जे से सुहुमयोंदिकलेवरे से उप्पे' इन दोनों उद्धवारों में जो सूक्ष्मवादिकलेवररूप उद्धार कहा गया है वह स्थापनीय-परित्यक्तव्य है। क्योंकि निरूपयोगी होने से इसके विचार की आवश्यकता नहीं है। 'तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओ णं वाससए वाससए गए गए एगमेगं गंगावालुयं अवहाय' इन दोनों उद्धारों में जो पादरबोंदिक. लेवररूप उद्धार कहा गया है । उस बादर बोदि कलेवर उद्धार में से १००,१०० वर्ष व्यतीत होने पर एक एक गंगा की वालुका के कण को निकालना चाहिये। ऐसा करते २ 'जावइएणं कालेणं से कोट्टे खीणे, नीरए, निल्लेवे, निढिए भवइ, से तं सरे सरप्पमाणे' जितने काल में वह गंगा समुदायरूप कोठा रिक्त हो जावे, बालुकारजःकण से रहित हो जाये, “तत्थ ण जे से सुहुमयोंदिकलेवरे से ठप्पे" Rना द्धारमाथा જે સૂક્ષમબેન્કિલેવર રૂપ ઉદ્ધાર છે, તે સ્થાપનીય–પરિત્યક્તવ્ય છે. કારણ કે તે નિરૂપાણી અથવા અસંભવિત હેવાથી તેને વિચાર કરવાની આવश्यता नथी. “ तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओ ण वाससए वाससए गए गए एगमेगं गंगावालुयं अवहाय” मा मे २ना माथी मार દિ કલેવરોદ્ધારનું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. ૧૦૦-૧૦૦ વર્ષ વ્યતીત થાય ત્યારે તે પરમાવતી ગંગાના એક એક રેતીના કણને બહાર કાઢ એ प्रमाणे ४२di ४२i " जावइएणं कालेण से कोटे खीणे, नीरए, निल्लेवे, निट्रिए भवइ, से त्तं सरे सरपमाणे" रेखा भi a समुदाय ३५ કેઠો (પટ) ખાલી થઈ જાય, રેતીના રજકણોથી રહિત થઈ જાય, ભૂમિમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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