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________________ ४५६ भगवतीसूत्रे धर्मकयां श्रोतुं पर्षद् निर्गच्छति, धर्मोपदेशां श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत् , तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोतेणं जाव छटै छट्टेणं' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी-शिष्यः इन्द्रभूति मानगारो गौतमगोत्र:गौतमगोत्रोत्पन्न इत्यर्थः, यावत्-षष्ठषष्ठेन-तनामकतपोविशेषेण आत्मानं भावयन् ' एवं जहा बित्तियसए नियंठुद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ' एवं रीत्या यथा द्वितीयशत के निर्ग्रन्थोद्देशके-पञ्चमोदेके प्रतिपादितस्तथैव प्रतिपत्तव्यः, यावत् श्रावस्त्यां नगर्यां गृहसमुदाये भिक्षाचर्याम् अटन-पर्यटन बहुजनशब्दम्-अनेकजनवार्तालापं, निशामयति-शृणोति, 'बहुजणो अन्नमन्नस्स उस काल और उस समय में भगवान् महावीर वहां पधारे यावत् उनसे धर्मकथा को सुनने के लिये परिषद् उनके पास गई और धर्मोपदेश सुनकर वह वहां से पीछे चली गई। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेहे अंतेवासी इंदभूईणामं अणगारे गोयमगोत्तेणं जाव छ8 छ?णं' उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी-इन्द्रभूति नाम के अनगार कि जो गौतम गोत्री थे यावत् षष्ठ षष्ठ तपोविशेष से आत्मा को भावित करते हुए ‘एवं जहा वितियसए निणंठु. देसए जाप अडमाणे बहुजणसहं निसामेई' जैसा द्वितीय शतक में पांच निर्ग्रन्थ उद्देशे में कहा है उसी के अनुसार यावत्-श्रावस्ती नगरी में गृहसमुदाय में भिक्षाचर्या करते समय अनेक जनों के वार्तालाप को सुना-'बहुजणो अन्नमनस्स एवमाइक्खइ, जाव पख्वेई' अनेकजन उस શ્રાવસ્તી નગરીને કાષ્ઠક ઉદ્યાનમાં પધાર્યા ધર્મકથા શ્રવણ કરવાને પરિષદ नीजी धम था सामजीन परिष४ पाछी ५३. "वेण कालेण तेण' समपण समणस्स भगवओ महावीरस्म जेटे अंतेवासी इंइभूई णामं अणगारे गोयमगोत्तेण जाव छटु छटेण" णे मन त समये श्रम मावान महावीरन न्य०४ અન્તવાસી શિષ્ય) ઇન્દ્રભૂતિ નામના અણગાર હતા. તેઓ ગૌતમ ગેત્રના હતા. તેઓ છઠ્ઠને પારણે છઠ્ઠની તપસ્યાથી આત્માને ભાવિત કરતા. "एवं जहा वितियसए नियंठुहेसए जाव अडमाणे बहुजणस निसामेइ" બીજા શતકના પાંચમાં “નિગ્રંથ ઉદ્દેશામાં” કહ્યા અનુસાર, શ્રાવસ્તી નગરીના ગૃહસમુદાયમાં ભિક્ષાચર્યા નિમિત્તે ફરતા હતા, ત્યારે તેમણે અનેક साना fer५ सामन्ये.. "बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, जाव परू શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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