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________________ ३६२ भगवतीसूत्रे धर्मशानयोः सनत्कुमारमाहेन्द्रयोश्च कियत् अबाधया, अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-' एवं चेत्र' हे गौतम ! एवमेव - पूर्वोक्तरीत्यैव सौधर्मेशानयोः, सनत्कुमार माहेन्द्रयोश्च परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? गौतमः पृच्छति--' सणंकुभारमाहिंदाणं भंते ! बंभलोगस्स कप्पस्स य केवइयं १०' हे भदन्त ! सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः खलु ब्रह्मलोकस्य कल्पस्य च परस्परं कियत् अबाधया अन्तरं व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह'एवं चेत्र' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव, सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः ब्रह्मलोकस्य कल्पस्य च परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं व्यवधान प्रज्ञप्तम् ! गौतमः पृच्छति-'मलोगस्स णं भंते ! लंतगस्स य कप्पस्स केवइयं०' माहिदाण य केवइए०' हे भदन्त ! सौधर्मईशान और सनत्कुमार माहेन्द्र इनमें परस्पर में बीच में कितना अन्तर कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवंचेव' हे गौतम! पूर्वोक्तरीति से ही सौधर्म ईशान में और सनत्कुमार माहेन्द्र में असंख्यात हजार योजन का अन्तर अषाधा को लेकर कहा गया है। अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सर्णकुमारमाहिंदाणं भंते! बंभलोगस्स कप्पस्स य केव. इयं ?' हे भदन्त ! सनत्कुमारमाहेन्द्र और ब्रह्मलोक इनमें परस्पर में कितना अन्तर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम! पूर्वोक्त रीति से सनत्कुमार माहेन्द्र और ब्रह्मलोक कल्प इनमें आपस में अबाधा को लेकर अन्तर असंख्यात हजार योजन का कहा गया है। अब गौतम ऐसा पूछते हैं-'बभलोगस्स णं भंते ! लंतगस्स गौतम स्वामीना प्रश्न-" सोहम्मीस्रोणाणं भंते ! सणंकुमारमाहिंदाण य केवइए०" 3 सन् ! सौधमशान zen मने सनभार माहेन्द्र ४६५। વચ્ચે કેટલું અંતર કહ્યું છે? मडावीर प्रभुना उत्त२-" एवं चे" 3 गौतम ! सौधमान भने સનકુમાર મહેન્દ્ર ક વચ્ચે અસંખ્યાત હજાર એજનનું જ અંતર કહ્યું છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" सणकुमारमाहिंदाणं भंते ! बंभलोगरस कप्पस्स य केवइयं " समवन् ! सनमा२ माहेन्द्र पो मने ब्रह्मा ४६५नी વચ્ચે કેટલું અંતર કહ્યું છે? महावीर प्रभुना उत्तर-"एवं चेव" है गीतम! पूतिशत सनમાર મહેન્દ્ર કલ્પથી બ્રહ્મલોક કલ્પનું અંતર અસંખ્યાત હજાર યોજન છે. गौतम स्वामीन। प्रश्न-"बभलोगस्त णं भंते ! लंतगस्स य कप्पस्स केवइयं ?" उससवन् । ब्रह्मा ४६५ म त १२ये ४८ मत२ ४ छ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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