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________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ८ सू० १ अन्तरनिरूपणम् यप्पभाए य पुढीए केवइए० १' हे भदन्त ! शर्करामभायाः खलु पृथिव्याः, वालुकाममायाश्च पृथिव्याः कियद् अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-एवं चेच, 'एवं जाव तमाए अहे सत्तमाए य' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैत्र शर्कराप्रभापृथिव्याः वालुकामभापृथिव्याश्च परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अधाधया अन्तरं-व्यवधान प्राप्तम् । एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, यावत्-वालु. काप्रभागः पृथिव्याः पङ्कप्रभायाश्च पृथिव्याः परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं व्यवधानं प्रज्ञप्तम् । एवमेव पङ्कमभायाः पृथिव्याः धूमममायाश्च पृथिव्याः परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरंव्यवधानं प्रज्ञप्तम् । एवं धूमप्रभायाः पृथिव्याः तमायाश्च पृथिव्याः परस्परम् असंख्यानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् । तमायाः पृथि___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सकरप्पभाए णं भंते ! पुढवीए केवइए०' हे भदन्त ! शर्कराप्रभापृथिवी में और वालुका प्रभापृथिवी में जो दूरी को लेकर अन्तर कहा गया है वह कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम ! शर्कराप्रभापृथिवी औरवालुकाप्रभापृथिवी इन दोनों में जो दूरीरूप अन्तर कहा गया है, वह असंख्यात हजार योजन का कहा है । 'एवं जाव तमाए अहे सत्तमाए य' इसी प्रकार से वालुकाप्रभापृथिवी और पंकमभापृथिवी इनमें भी परस्पर में दूरी को लेकर जो अन्तर कहा गया है वह भी असंख्यात हजार याजन का कहा गया है। पंकप्रभापृथिवी और धूमप्रभा पृथिवी इनमें जो दूरी को लेकर अन्तर कहा गया है वह भी असंख्यात हजार योजन का कहा गया है । धूमप्रभा और तमः प्रभापृथिवी में परस्पर में अन्तर असंख्यात हजार योजन का कहा गया है। तमाप्रभापृथिवी और अधः गौतम स्वाभान प्रश्न-"सकरप्पभाए णं भंते ! पुढवीए वालुयप्पभाए य पुढवीए केवइए०?" मगवन् ! श मा पृथ्वी मने पाहुना पृथ्वीनी વચ્ચે કેટલું અંતર છે ? भडावार प्रभुन। उत्तर-“ एवं चेव" उ गीतम! NAYAL भने વાલુકા પ્રભા પૃથ્વી વચ્ચેનું અંતર પણ એટલું જ–અસંખ્યાત હજાર यसनन उखु छे. “एवं जाव तमाए अहेवत्तमाए य" मेरी प्रमाणे વલુકાપ્રભા અને પંકપ્રભા પૃથ્વી વચ્ચે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનનું અંતર છે. પંકપ્રભા અને ધૂમપ્રભા વચ્ચે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનનું અંતર છે. ધૂમપ્રભા અને તમ પ્રભા વચ્ચે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનનું શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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