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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ७ सू० ३ तुल्यताप्रकारनिरूपणम् ३३१ 'गोयमा! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्त पोग्गलस्स भावओ तुल्ले' हे गौतम ! एकगुणकालक:-एकगुणकालकत्वविशिष्टः कालकः एकगुणकालक:एकगुणकालककृष्णता विशिष्टः पुद्गलः, एकगुणकालकस्य-पुद्गलस्य भावतःकालत्वादिपर्यायविशेषादिना तुल्यो भवति, किन्तु 'एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगवइरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ णो तुल्ले ' एकगुणकालकः पुद्गला एकगुणकालकव्यतिरिक्तस्य पुद्गलस्य भावतो नो तुल्यो भवति, ‘एवं जाव दसगुणकालए' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव यावत्-द्विगुणकालकादारभ्य दशगुणकालपर्यन्तश्च पुद्गलो द्वयादिदशगुणकालकस्य पुद्गलस्य भावतःएकगुणकालकत्वादिपर्यायविशेषापेक्षया तुल्यो भवति, किन्तु द्वयादिदशगुणकालकः पुद्गलो द्वयादिदशगुणकालकव्यतिरिक्तस्य पुद्रलस्य भावतः-एकगुणभावतुल्य इसशब्द का क्या अर्थ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्त भावओ तुल्ले' एक गुणवालीकृष्णता से विशिष्ट पुद्गल एकगुणवाली कृष्णता से विशिष्ट पुद्गल के समान भाव की अपेक्षा से कालत्वादि पर्यायविशेष आदि को आपेक्षा से होता है, किन्तु वही एकगुणकालए पोग्गले 'एगगुणकालगवइरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ णो तुल्ले एकगुणवाली कृष्णतावाला पुद्गल दूसरे एक गुणवाली कृष्णतावाले पुद्गल से भिन्न पुद्गल के तुल्य भाव की अपेक्षा नहीं होता है। 'एवं जाव दसगुणकालए' इसी प्रकार से द्विगुणकालक से लेकर दशगुणकालकपर्यन्त पुद्गल द्वयादि दशगुणकालक पुद्गल द्वयादि गुणकालकत्वादि पर्यायविशेष की अपेक्षा से तुल्य होता है। किन्तु द्वयादिदशगुणकालक पुद्गल द्वयादिदशगुणकालक से भिन्न पुद्गल के तुल्य भाव भावार प्रभुनी उत्त२-" गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले” २४ गुशुपाणी तापायु पुस, थे ગુણવાળી કૃષ્ણતાવાળા બીજા પુગલની સાથે ભાવની અપેક્ષાએ-કૃષ્ણત્વ माहि पर्याय-विशेष माहिनी अपेक्षाये-तु८५ डाय है, परन्तु मे “एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगवइरित्तस्म पोग्गलस्स भावओ णो तुल्ले " ગુણવાળી કૃતાવાળું પુદ્ગલ, બીજા એક ગુણવાળી કૃષ્ણતાવાળા પુદ્ગલ सिवायना पसनी साथ सावनी अपेक्षा तुल्य डातुनथी. “एव जाव दसगुणकालए" मे प्रभा द्विगुण तापामाथी ४ ४२ शुष्य यताવાળા સુધીનાં પુદ્ગલે પણ પોતપોતાના જેટલી જ દ્વિગુણથી લઈને દસગુણ પર્વતની કૃષ્ણતાવાળાં પુદ્ગલેની સાથે ભાવની અપેક્ષાએ તુલ્ય (સમાન) હોય છે, પરંતુ એ જ પુદ્ગલ દ્વિગુણથી લઈને દસગુણ પર્યન્તની કૃષ્ણતા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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