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________________ ३२९ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ७ सू० ३ तुल्यताप्रकारनिरूपणम् क्षयाऽनन्तानामसद्भावाद् बोध्या, गौतमः पृच्छति - ' से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ- भवतुल्लए, भवतुल्लर ?' हे भदन्त । तत् अथ केनार्थेन एवमुच्यते भवतुल्यकं भवतुल्यकमिति ? भगवानाह - 'गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवट्टयाए तुल्ले, नेरइयवइरितस्स भवट्टपाए नो तुल्ले' हे गौतम! नैरयिको नैरयिकस्य भवार्थतया-भवो नारकादिरेव अर्थो भवार्थस्तद्भावस्तत्ता तया भवार्थतया - भवमयोजनकतयेत्यर्थः, तुल्यो भवति, नैयिको नैरयिकव्यतिरिक्तस्य भवार्थतया भवमयोजनकतया नो तुल्यो भत्रति 'तिरिक्खजोणिए अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चर, भवतुल्लए भवतुल्लए ' हे भदन्त । ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि भवतुल्य शब्द भवतुल्यक अर्थ का वाचक है ? अर्थात् भवतुल्यक इस शब्द का क्या अर्थ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोमा ! नेरइए नेरश्वस्त भवट्ठपाए' तुल्ले, नेरइयवइरित्तस्स भवट्टया नो तुल्ले' हे गौतम! नैरयिक नैरयिक भव की अपेक्षा से दूसरे नैरयिक के तुल्य होता है। परन्तु वही नैरयिक नैरधिक भव से अतिरिक्त के साथ भव की अपेक्षा तुल्य नहीं होता है । 'तिरिक्खजोणिए एवं चेव' इसी प्रकार का कथन तिर्यग्योनिक जीव के विषय में भी कर लेना चाहिये । अर्थात एक तिर्यग्योनिक जीव तिर्यग्भव की अपेक्षा से दूसरे तिर्यग्योनिक जीव के बराबर होता है । परन्तु वही तिर्यग्यो हवे गौतम स्वाभी सेवा प्रश्न पूछे छे है-" से केणट्टेण भंते ! एव बुच्चइ, भवतुल्लए - भवतुल्छए ?" हे भगवन् ! आप शारलेमे કહા छ લવતુક પદ્મ ભવની અપેક્ષાએ તુલ્યતાનુ' વાચક છે? એટલે કે ભવતુલ્યક પદને શે। અથ થાય છે ? > भडावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स्स भवट्टयाए तुल्ले, नेरइयवइरित्तर भवट्टयाए नो तुल्ले " हे गौतम | नार४ नैरथिङ अवनी અપેક્ષાએ બીજા નારક સાથે સમાન હોય છે, પરન્તુ એજ નારક તૈરચિક ભવ સિવાયના ભવવાળા જીવની સાથે ભવની અપેક્ષાએ તુલ્ય હાતા નથી. 'तिरिक्खजोणिए एवंचेव " मेन प्रहार उथन तिर्यग्योनि लवना विष 66 જીવતિય ચ ભવની અપે યમાં પણુ સમજવુ' એટલે કે એક તિયઐાનિક ક્ષાએ ખીજા તિય ચ જીવતી ખરાખર છે, પરન્તુ ત"ચ ભવ સિવાયના ભવવાળા જીવની ખરાખર, भ० ४२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ એજ તિય ચૈનિક જીવ ભવની અપેક્ષાએ, હાતા
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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