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________________ भगवतीसूत्रे 'गोयमा ! अणुत्तरोववाइया णं अणंताभो मणोदब्यवग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमन्नागयाओ भवंति' हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिकाः खलु अनन्ताः, मनोद्रव्यवर्गणाः लब्धास्तद्विषयावधिज्ञानलब्धिमन्तः, माप्तास्तद्र्व्यपरिच्छेदवन्तः अभिसमागमत्वागता तद्गुणपर्याय परिच्छे दवन्तो भवन्ति । तस्मादावयोर्भावितुल्यता लक्षणमर्थं ते जानन्ति पश्यन्ति । ‘से तेगडेणं गोयमा ! एवंबुच्चइ जाव पासंति' हे गौतम ! तत्-अथ, तेनार्थेन एवमुच्यते-यावत् खलु वयम् एतमर्थ जानीमा, पश्यामः, तथा अनुत्तरौपपातिका अपि देवा एतमर्थ जानन्ति पश्यन्तीति ॥सू० २॥ जानते हैं और देखते हैं, उसी प्रकार के अनुत्तरौपातिक देव भी इस अर्थ को जानते और देखते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अणंताओ मणोदव्यवग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमन्नगयाओ भवंति' हे गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देव अनन्त मनोद्रव्यवर्गणाओं को लब्ध किये होते हैं अर्थात् तविषयक अवधिज्ञानलब्धिवाले होते हैं-प्राप्त किये होते हैं-उनके द्रव्यों के ज्ञानवाले होते हैं और अभिसमन्वागत होते हैं उनके गुणों के और पर्यायों के ज्ञाता होते हैं इस कारण हमारी तुम्होरी भावितुल्यतारूप अर्थको वे जानते हैं और देखते हैं 'से तेणटेणं गोयमा! एवं पुच्चा, जाव पासंति' इसीलिये हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जिस प्रकार हम तुम हमारी तुम्हारी होनेवाली तुल्यतारूप अर्थको जानते हैं और देखते हैं, उसी प्रकार से अनुत्तरौपपातिक देव भी इस अर्थको जानते और देखते हैं।सू ०२॥ महावीर प्रभुने। उत्तर-" गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अणंताओ मणो दव्ववग्गणाओ लद्धाओ, पत्ताओ, अभिसन्नागयाओ भवंति" 3 गौतम ! मनुતરીપ પાતિક દેએ અનંત મદ્રવ્યવર્ગણાઓને લબ્ધ કરેલી હોય છે– (એટલે કે તદ્વિષયક અવધિજ્ઞાનલબ્ધિવાળા હોય છે) પ્રાપ્ત કરેલી હોય છે (તેમના દ્રવ્યના જ્ઞાનવાળા હોય છે) અને અભિસમન્વાગત કરેલી હોય છે તેમના ગુણેના અને પર્યાયોના જ્ઞાતા હોય છે. તે કારણે તેઓ આપણી मन्ननी मावितुल्यता ३५ अथ°न onm छ भने तुणे छे. “से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ, जाव पासंति "D गौतम! ते रणे में मेवु છે કે જેવી રીતે આપણે બને આપણી ભાવિ સમાનતા રૂપ અર્થને જાણીએ, દેખીએ છીએ, એવી જ રીતે અનુત્તરૌપયાતિક દેવે પણ આપણી બનેની ભાવિતુલ્યતા રૂપ અર્થને જાણે-દેખે છે. સૂરા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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