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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१४ उ०२ सू०२ देवानां वृष्टिकायकरणनिरूपणम् १९१ रोति ? भगवानाह - ' हता, अत्यि' हन्त-सत्यम् अस्ति संभवति-पर्जन्यः काल. वर्षी वृष्टिकायं प्रकरोति, गौतमः पृच्छति-'जाहे णं भंते ! सक्के देविदे देवराया बुट्टिकायं काउकामे भवइ से कहमियाणि पकरेइ ?' हे भदन्त ! २दा खलु शक्रो देवेन्द्रो देवराजो दृष्टि कायम्-अप्कायवर्षगं कर्तु कामो भवति इदानीं तदा स देवेन्द्रः शक्रः कथं कया रीत्या वृष्टि कार्य प्रारोति ? भगवानाइ-गोयमा ! ताहे क्षेत्र णं से सक्के देविदे देवराया अभितरपारिसए देवे सदावेइ' हे गौतम । तदा चैव-तस्मिन् समये खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः आभ्यारपारिषद्यान देवान् शब्दयति-आह्वयति, 'तर णं ते अभितरपारिसया देवा सदाविया समाणा मज्झिमपारिसए देवे सहावेंति' ततः खलु ते आभ्यन्तरपारिषद्या देवाः शब्दायिता:-आहूताः सन्तो मध्यमपारिषद्यान देवान् शब्दयन्तिकालवर्षी होता है-क्योंकि वह काल-जिनजन्म आदि महोत्सव के समय-में वरसता है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अस्थि हां गौतम ! ऐसा होता है कि कालवर्षी पर्जन्य वृष्टि करता है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जाहे णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया बुटिकाउंकामे भवइ, से कह मियाणि पकरेह' हे भदन्त ! जय देवेन्द्र देवराज शक्र वर्षा करने की कामनावाले होते हैं, तब वे देवेन्द्र देवराज शक्र किस रीति से वर्षा करते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा हे गौतम ! 'ताहे चेव णं से सके देविदे देवराया अभितरपरिसए देवेसद्दावेई' तब वे देवेन्द्र देवराज शक अपनी भीतर की सभा के सदस्य देवों को बुलाते हैं, 'तए णं ते अबिभतरपारिसया देवा सहाविया समाणा मज्झिमपारिसए देवे सद्दावें ति' बुलाये गये वे आभ्यन्तर परि
भापीर प्रभुना उत्तर-"हंता, अस्थि " 1, गौतम ! मे थाय छ भासी पन्य वृष्टि ४३ छे.
गौतम स्वामीन --"जाहे ण भंते ! सक्के देविदे देवराया बुटिकाउं. कामे भवद, से कह मियाणिं पकरेइ ?" है भगवन् ! यारे देवन्द्र देवरा શક્રને વર્ષા કરવાની ઈચ્છા થાય છે, ત્યારે દેવેન્દ્ર દેવરાય શક કેવી રીતે વર્ષા કરે છે? ___महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा !" ३ गौतम ! " ताहे चेव णं से सक्के देविंदे देवराया अभितरपरिसए देवे सहावेइ" त्यारे ते हेवेन्द्र १२१ शपातानी भास्यन्त२ समाना हेवाने मसावे छे. “ तएणं ते अभितरपारिसया देवा सदाविया समाणा मज्झिमपारिसए देवे सहावे ति" माय-तर
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧