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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ८५ प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'जाव अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो असंखेज्जपएसिए, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ' यावत्-एकतः परमाणुपुद्गलो भवति, एक तस्त्रिचतुःपञ्चषट्सप्ताष्टनवदशसंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, अथवा एकतः-परमाणुपुद्गलो भवति, एकतःअसंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो दो अणंतपएसिया खंधा भवति' अथवा एकत:परमाणुपुद्गलो भवति, एकतो द्वौ अनन्तप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'अहवा एगयओ है 'जाव अहया एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ असंखेज्जपएसिए, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवई' यावत् एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, एकभाग में तीनप्रदेशी, चार प्रदेशी, पांच प्रदेशी, छहप्रदेशी, सातप्रदेशी, आठप्रदेशी, नौ प्रदेशी दशप्रदेशी, एवं संख्यातप्रदेशी स्कंध होता है और अन्यभाग में अनन्तप्रदेशिक एक स्कंध होता है। अथवा-एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, अपरभाग में असं. ख्यातप्रदेशिक स्कंध होता है, और अन्यभाग में अनन्तप्रदेशिक एक स्कंध होता है 'अहवा-एगयओ परमाणुगोग्गले एगयओ दो अणंतपए. सिया खंधा भवंति ' अथवा-एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है एवं अपरभाग में दो अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं, 'अहवा-एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति' अथवा-एकभाग में બીજા વિભાગમાં ક્રિપ્રદેશિક એક સકંધ અને ત્રીજા વિભાગમાં અનંત પ્રદેશી मे २४५ डाय छे. " जाव अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ असंखेज्जपएसिए, एगयो अणंतपएसिए खंधे भवइ " अथवा मामा से પરમાણુ પુલ હોય છે, બીજા ભાગમાં ત્રણ પ્રદેશી, ચારપ્રદેશી, પાંચપ્રદેશ, છ પ્રદેશી, સાત પ્રદેશી, આઠ પ્રશી, નવ પ્રદેશી, દસ પ્રદેશ અથવા સંખ્યાત પ્રદેશી કંધ હોય છે અને ત્રીજા વિભાગમાં અનંત પ્રદેશી એક કપ હોય છે. અથવા એક ભાગમાં એક પરમાણુ યુગલ હોય છે, બીજા ભાગમાં અસંખ્યાત પ્રદેશી એક સ્કંધ હોય છે અને ત્રીજા ભાગમાં અનંત પ્રદેશી स धडीय छ. “ अहवा-एगयओ परमाणुपोगले, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति " 0241-2मे विलापमा से ५२मा पुगर डाय छ मन माझीना विभागमा मनत प्रदेश ४ मे १४५ डाय छे. “ अहवाएगयओ दुप्पएसिप, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति " अथवा " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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