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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ५ स्कन्धो भवति, एकतः-अपरमागे संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति' "अथवाएकतः-एकमागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः, एकत-अपरभागे द्वौ संख्येयप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति' अथवा एकतः-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः-अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकत:-अन्यभागे द्वौ संख्येयप्रदेशिको स्कन्धौ भयतः, 'जाव अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दसपएसिए खंधे, एगयो दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति' यावत्-एकतः परमाणु पुद्गलो भवति, एकतः त्रिप्रदेशिकः, चतुष्पदेशिकः, पञ्चपदेशिकः षट्भदेशिका, अथवा एक भाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं, अपर भागमें एक दशप्रदेशी स्कन्ध होता है और अन्य भाग में एक संख्यातप्रदेशी स्कंध होता है, (अहवा-एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दो संखेज्ज. पएसिया खंधा भवंति,) अथवा एक भाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं, और अपरभाग में दो संख्यातप्रदेशी स्कन्ध होते हैं, 'अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए एगयओ दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति' अथवा-एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, एक भाग में एक द्विप्रदेशी स्कंध होता है, और एक भाग में दो संख्यात प्रदेशी स्कंध होते हैं, 'जाव अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ दसपएसिए खंधे, एगयओदो संखेजपएसिया खंधा भवंति' यावत् अथवा एक परमाणुपुद्गल होता है, एक भाग में त्रिप्रदेशिक, चतुष्प्रदेशिक, पंचप्रदेशिक, छहઅથવા એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા બે વિભાગ, દસ પ્રાદેશિક સ્કંધ રૂપ ત્રીજે વિભાગ અને સંખ્યાત પ્રદેશ સ્કંધ રૂ૫ ચોથો વિભાગ થાય છે. " अहवा एगय ओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति " અથવા એક એક પરમાણુ યુદ્ગલવાળા બે વિભાગ અને સંખ્યાત પ્રદેશી मे २४५३५ भी ये विलाथाय छ, “अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति" मया । પરમાણુપુદ્ગલવાળ પહેલે વિભાગ, દ્ધિપ્રદેશિક એક સ્કંધ રૂપ બીજે વિભાગ भने सध्यात:शी २४५३५ त्रीने मन. या विमा भने छ, “जाव अहवा एगयओ परमाणुपोगगले, एगयओ दसपएसिए खंधे, एगयओ दो संखेज्ज पएसिया खंधा भवंति" मया-3 लामा ४ ५२॥ पुस, भी ભાગમાં ત્રિપ્રદેશિક અથવા ચાર પ્રદેશિક, અથવા પાંચ પ્રદેશિક, અથવા છ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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