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________________ भगवतीसूत्रे आह-'भगवं ! णो इणढे समढे' हे भगवन् ! नायमर्थः समर्थः नैवं भवितुमर्हति, भगवानाह -'अणंता पुण तत्थ जीवा ओगाढा' किन्तु हे गौतम ! अनन्ताः पुनस्तत्र सहस्रप्रदीपलेश्यासु-पदीपपकाशेषु जीवा अवगाढा भवन्ति, प्रकृतमुपस रनाह-'से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चर-जाव ओगाढा' हे गौतम ! तत् तेनाथन, एवमुच्यते यत्-त्वम्-एतस्मिन् धर्मास्तिकायादित्रये नो कश्चित् पुरुषः आसितुं वा, स्थातुवा, निषत्तुं वा, त्ववर्तयितुं वा शक्नुयात् किन्तु अनन्ताः पुनस्तत्र जीया अवगाढा भवन्ति ॥ १२॥ बहुसमहार वक्तव्यताप्रस्ताव: मूलम्-कहि णं भंते! लोए बहुममे? कहिणं भंते! लोए सम्वविग्गहिए पण्णत्ते ? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेटिल्लेसु खुड्डागपयरेसु, एत्थ णं लोए बहुसमे, एत्थ णं सकता है ? इस पर गौतम कहते हैं- भगवं! णो इणटे समढे' हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् ऐसा नहीं हो सकता है । तब प्रभु कहते हैं 'अणंता पुण तस्य ओगाढा' परन्तु वहां अनन्त जीव अवगाढ होते हैं । ‘से तेणष्टेणं गोयना ! एवं वुचद जाव ओगाढा' इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि इस धर्मास्तिकायादिकत्रिक में कोई पुरुष न बैठ सकता है, न उठ सकता है, न खड़ा रह सकता है, और न करवट बदल सकता है। क्योंकि ये तीनों ही द्रव्य अमूर्त हैं। पर ऐसा होने पर भी अनन्त जीव इनमें अवगाढ होते हैं ।सू. १२॥ ॥ इति अस्तिकायप्रदेशनिषदनद्वार वक्तव्यता॥ गौतम स्वामीन। उत्तर-" भावं ! जो इणद्वे समढे" मगन् ! से समावी शतु नथी. त्या महावीर प्रसु -" अणंता पुण तत्थ ओगाढा" ५२न्तु त्यां मनत व स हाय छे. “से तेणदेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव ओगाढा " गीतम! ते २0 में से यु छ , मा ધર્માસ્તિકાય આદિ ત્રણ દ્રવ્યમાં કઈ પણ પુરુષ બેસી શકતો નથી ઊઠી શકતે નથી, ઊભો રહી શક્યું નથી અને પડખું બદલી શકતું નથી કારણ કે તે ત્રણે દ્રવ્ય અમૂર્ત છે એવું હોવા છતાં પણ અનંત છે તેમાં A८ (स्थित) छ ।सू०१२।। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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