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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गल निरूपणम् ५३ " यावत् एकतः संहन्यन्ते, एकतः संहस्य किं स्वरूपं वस्तु भवति ? भगवानाह - हे गौतम! दश परमाणुपुङ्गलाः संहत्य दशम देशिकः स्कन्धो भवति, स दशप्रदेशिकः Earat feeमानः द्विधापि, त्रिधाष, चतुर्भापि, पञ्चधापि, पोढापि, सप्तधापि, अष्टधापि, नवधाऽपि दशधापि क्रियते, तत्र द्विधा क्रियमाणः एकतः- एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः - अपरभागे नवमदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एमओ दुष्पसिए खंधे, एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवइ' अथवा - एकतःएकमागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अपरभागे अष्टप्रदेशिकः स्वन्धी भवति, 'एवं एक्केक्s' संचारेयव्वंति - जाव अहवा दो पंच परसिया खंधा भवंति एवं पूर्वोक्तरीत्या, एकैकं संचारयितव्यम् - अभिलापक्रमेण वक्तव्यम्, उनसे किस वस्तु का उत्पाद होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैंगौतम | दश पुद्गलपरमाणु जब आपस में मिलते हैं-तब उनके मिलाप से एक दशप्रदेशिक स्कन्ध उत्पन्न होता है । जब इस दशप्रदेशिक स्कन्ध का विभाग किया जाता है तब इसके दो भी, तीन भी, चार भी, पांच भी, छह भी, सात भी, आठ भी, नौ भी और दश भी विभाग हो सकते हैं जब इसके दो विभाग किये जाते हैं तब एक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, और दूसरे भाग में नौ प्रदेशोंवाला एक स्कन्ध होता है 'अहवा - एगयओ दुप्पएमिए खंधे, एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवइ' अथवा एक भाग में द्विप्रदेशी स्कन्ध होता है, और एक दूसरे भाग में अष्टप्रदेशिक एक स्कन्ध होता है-' एवं एक्केकं संचारेयव्वंति जाव अहवा दो पंचपएसिया, खंधा भवति' इस प्रकार ww महावीर अलुना उत्तर- " जाव दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोगले, एगयओ नवपरसिए खंधे भवइ " हे गौतम! न्यारे हस પરમાણુ પુટ્ટુગલે એક ખીજા સાથે મળી જાય છે, ત્યારે તેમના સચેાગથી એક દસપ્રદેશિક સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે. જ્યારે તેના વિભાગેા કરવામાં આવે છે, ત્યારે એ, भक्षु, यार, पांथ, छ, सात, आई, नव अथवा इस विलागो थ शडे छे. જ્યારે તેના બે વિભાગ કરવામાં આવે છે, ત્યારે તેના એક વિભાગમાં એક પરમાણુ પુદ્ગલ હોય છે અને ત્રીજા વિભાગમાં નવ પ્રદેશેાવાળા એક સ્મુધ होय . " अहवा - एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ अट्ठ परसिए खंधे भवइ" અથવા એક ભાગ દ્વિપ્રદેશિક કધ રૂપ હાય છે અને બીજો ભાગ અષ્ટપ્રદે शिक सुध३५ होय छे. " एव' एक्केकं संचारे यव्वंति जाव अहवा दो पंच पएसिया खंधा भवंति " उभे पूर्वोक्त पद्धति प्रमाणे खेड रोड अहेशनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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