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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू०९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६४९ कायप्रदेशाः कियद्भिः धर्मास्तिकायपदेशैः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह- जहन्नपए चोदसहि, उक्कोसपए बत्तीसार' हे गौतम ! जघन्यपदे-जघन्येन, चतुर्दशभिः धर्मास्तिकायप्रदेशैः उत्कृष्टपदे-उत्कृष्टेन, द्वात्रिंशता धर्मास्तिकायप्रदेशैः षट्पुद्गला. स्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'सत्तपोग्गलत्थिकायपएसा केवइएहि धम्मत्यिकायपएसेहिं पुट्टा ? ' हे भदन्त ! सप्त पुद्गलास्तिकायमदेशाः कियद्भिः धर्मास्तिकायप्रदेशैः स्पृष्टा भान्ति ? भगवानाह-' जहण्णेणं सोलसहि उकोसेणं सत्तत्तीसाए' हे गौतम ! जघन्येन षोडशभिः धर्मास्तिकायमदेशैर, उत्कृष्टेन सप्तत्रिंशता धर्मास्तिकायमदेशैः सप्तपुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा स्पृष्ट होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'छ पोग्गलत्थिकायपएसा' हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय के ६ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'जहन्नपए चोदसहि, उक्कोसपए बत्तीसाए' हे गौतम! जघन्यपद में धर्मास्तिकाय के १४ प्रदेशों द्वारा और उत्कृष्ट पद में ३२ प्रदेशों द्वारा पुद्गलास्तकाय के प्रदेश स्पृष्ट होते है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सत्त पोग्गलस्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपएसे हिं पुट्ठा' हे भदन्त ! सात पुद्गलास्तिकाय प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशा द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जहण्णेणं सोलसहि उक्कोसेणं सत्ततीसाए' हे गौतम ! पुद्लास्तिकाय के सात प्रदेश जघन्य पद में धर्मास्तिकाय में १६ प्रदेशो द्वारा और उस्कृष्ट पदधर्मास्तिकाय के ३७ प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते गौतम पाभीन। प्रश्न-“ छ पोग्गलस्थिकायपएमा०" & समपन् ! पुशલાસ્તિકાયના છ પ્રદેશ ધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે? ___ मडावीर प्रभुने। उत्तर-" जहन्नपए चोदसहि, उक्कोसपए बत्तीसाए" હે ગૌતમ! પુદ્ગલાસ્તિકાયના છ પ્રદેશ ધર્માસ્તિકાયના ઓછામાં ઓછા ૧૪ પ્રદેશ વડે અને વધારેમાં વધારે ૩૨ પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે. गौतम भीना प्रश्न-" सत्त पोग्गलस्थिकायपएसा केवइएहि धम्मत्थिकायपएसेहि पुट्ठा?" सन् ! सात पुस्तिय प्रदेश ४८ घा. સ્તિકાયપ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે? __महावीर प्रभुन। उत्त२-" जहन्नण सोलसहि', उक्कोसेण सत्ततीमाए" હે ગૌતમ! પુદ્ગલાસ્તિકાયના સાત પ્રદેશ ધર્માસ્તિકાયના ઓછામાં ઓછા ૧૬ પ્રદેશે વડે અને વધારેમાં વધારે ૩૭ પ્રદેશો વડે પૃષ્ટ થાય છે. भ० ८२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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