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________________ ६३६ भगवती सूत्रे टीका - इतः पूर्वं धर्मास्तिकायादीनां चतुर्णां पुद्गलास्तिकायस्य चेकैकस्यप्रदेशस्य स्पर्शना प्रतिपादिता, अथ विशिष्य पुद्गलास्तिकायस्यैव द्विपदेशादि स्कन्धानां स्पर्शनां प्ररूपयितुमाह-' दो भंते ' इत्यादि । 'दो भंते! पोग्गलस्थिकायreer har धम्मत्थिकायपरसेहिं पुट्टा ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! द्वौ पुस्तिका प्रदेश कियद्भिः धर्मास्तिकाय देशैः स्पृष्टौ भवतः ? भगवानाह - 'जहन्नपदे छर्हि, उकोसपए बारसहिं' हे गौतम! जघन्यपदे - जघन्येन षभिः, उत्कृष्टपदे उत्कृष्टेन द्वादशमिः धर्मास्तिकाय प्रदेशैः द्वौ पुद्गलास्तिकायम देशौ स्पृष्टों 3 द्विप्रदेशिकादि पुद्गलास्तिकाय स्पर्श द्वारवक्तव्यता'दा भंते! पोग्गलस्थिकायपएसा के बहएहिं धम्मत्थिकायपए से हिं' इत्यादि । टीकार्थ - इस सूत्र से पहिले धर्मास्तिकायादिक चार अस्तिकाय के और पुद्गलास्तिकाय के एक एक प्रदेश की स्पर्शना कही है। अथ वे विशेषरूप से इस सूत्र द्वारा पुद्गलास्तिकाय के ही द्विप्रदेशादिरूपस्कन्धों की स्पर्शना की प्ररूपणा कर रहे हैं- इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है - 'दो भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मस्थिकाय एसेहिपुडा' हे भदन्त | पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' जहन्नपए छहिं, कोसपए बारसहिं' हे गौतम ! जघन्यपद में अर्थात् जघन्य से धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों द्वारा और उत्कृष्ट से धर्मास्तिकाय के १२ प्रदेशों द्वारा पुगलास्तिकाय के दो प्रदेश स्पृष्ट होते हैं । इसका तात्पर्य —એ આદિ પ્રદેશેવાળા પુદ્ગલાસ્તિકાય સ્પશ દ્વાર વક્તવ્યતા— " दो मंजे ! पोगाल स्थायपरसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपरसेहि " छत्याहिટીકા –પૂર્વ સૂત્રમાં ધર્માસ્તિકાયાદિક ચાર અસ્તિકાયાના અને પુદ્ગલાસ્તિકાયના એક પ્રદેશની સ્પનાનું કથન કરવામાં આવ્યુ છે. હવે સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા પુદ્ગલાસ્તિકાયના બે આદિ પ્રદેશેાવાળા સ્કધાની પ્રરૂપણા કરે છે. આ વિષયને અનુવ્રુક્ષીને ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને वे प्रश्न पूछे छे -" दो भंते! पोगलत्थि कायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपरसेहि पुट्ठा ?" डे भगवन् ! युद्धसास्तिअयना मे प्रदेशी धर्मास्तिायना કેટલા પ્રદેશે! વડે પૃષ્ટ થાય છે भडावीर प्रभुना उत्तर- " जहन्नपए छहि, उक्कोसपए बारसहिं " डे ગૌતમ! પુદ્ગલાસ્તિકાયના બે પ્રદેશ આછામાં ઓછા છ અને વધારેમાં વધારે ખાર ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશ વડે પુષ્ટ થાય છે. તેનું સ્પષ્ટીકરણ નીચે પ્રમાણેછે છ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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