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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श• १२ ३० ४ ० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ५१ " भवन्ति, एकत: - अपरभागे चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगओ दुपपसिए खंधे, एगयओ तिप्पएसिए खधे भवइ अथवा एकत: - एकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः - अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे त्रिमदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया बंधा भवति' अथवा एकतः - एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः - अपरभागे त्रयो द्विपदेशिकाः स्कन्धा भवन्ति, 'सत्तहा कज्जमाणे एगयओ छ परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पए सिए खंधे भवई' नवप्रदेशिकः स्कन्धः सप्तधा क्रियमाणः, एकतः - एकभागे षट् परमाणुपुद्गला, भवन्ति, एकत: - अपरभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ पंच परमाणुपोग्गला एगयओ दो दुप्पएपुद्गल होते हैं, और दूसरे भाग में चार प्रदेशी स्कन्ध होता है । 'अहवाएगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पसिए बंधे एगयओ तिप्पएसिए खंधे भव' अथवा एक भाग में चार परमाणुपुद्गल होते हैं, एक भाग में द्विप्रदेशिक एक स्कन्ध होता है, तथा और दूसरे भाग में एक त्रिप्रादेशिक स्कन्ध होता है। 'अवा-एगओ तिनि परमाणुपोगला, एगयओ दुप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एक भाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं' एक दूसरे भाग में तीन द्विप्रदेशी स्कन्ध होते हैं" सत्तहा कज्जमाणे एगयओ छ परमाणुपोग्गला, एगबओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' जब यह नौ प्रदेशोंवाला स्कन्ध सात विभागों में विभक्त किया जाता है तब एक भाग में ६ परमाणुपुद्गल होते हैं और दूसरे भाग में त्रिप्रदेशीएक स्कन्ध होता है। ' अहवा - एगयओ पंच परमाणुपोग्गला - એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા પાંચ વિભાગા અને એક ચાર પ્રદેશિક સ્મુધ રૂપ मेड विभाग थाय छे. " अहवा - एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगथओ दुपसिए खंधे, एगयओ तिपएसिए खंधे भ इ " अथवा थोड थोड परमायु પુદ્ગલવાળા ચાર વિભાગેા, દ્વિપ્રદેશિક એક સ્કંધરૂપ એક વિભાગ અને ત્રિપ્ર દેશિક એક કૉંધ રૂપ એક વિભાગ થાય છે. अहवा - एगयओ तिन्नि परमाणुागला, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा भवंति " અથવા એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા ત્રણ વિભાગેા અને દ્વિદેશિક ત્રણ સ્કંધ રૂપ ત્રણ बिलागो थाय छे. “ सत्तहा कज्जमाणे एगयओ छ परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्परसिए खंधे भवइ " ते नव अहेशि धना न्यारे सात पिलाओ। ४२वामां "" આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા ૭ વિભાગા અને ત્રિપ્રદેશિક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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