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________________ ५५६ भगवतीसूत्रे उत्पाद-च्यवन-साताविषयकाणि अभिलापकरूपाणि प्रश्नोत्तररूपेण रत्नप्रभा. पृथिवीवद् वक्तव्यानि ‘एवं जाव गेवेज्जविमाणेसु वि' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, याव-नागकुमारादिभवनपति-वानन्यन्तर-ज्योतिषिक- सौधर्मेशानादिविमाना. वासेषु अवेयकविमानेष्वपि च संख्येयासंख्येयविस्तृतेषु, एवमेव पूर्वोक्तवदेव प्रश्नोत्तररूपा आलापका भणितव्याः। 'अणुत्तरविमाणेसु एवं चेव' अनुत्तरविमानेध्वपि एवमेव त्रयः आलापकाः प्रश्नोत्तररूपेण कर्त्तव्याः! 'नवरं तिसुवि आलावएसु मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी य न भण्णंति, सेसं तं चेव' नवरं पूर्वापेक्षया विशेपस्तु-त्रिवपि आलापकेषु-उत्पाद-च्यवन-सत्ता-विषयकेषु संख्यातासंख्यातवित्थडेसु वि तिनि गमगा' इसी प्रकार से असंख्पातविस्तारवाले असुरकुमारावासों में सम्यकदृष्टि, मिथ्याष्टि और मिश्रदृष्टियों के उत्पाद, उतना और सत्ताविषयक तीन आलापक प्रश्नोत्तररूप से कहना चाहिये । 'एवं जाव गेवेज्जविमाणेसु वि' इसी पूर्वोक्त रीति के अनुसार ही यावत् नागकुमारादिभवनपतियों के वानव्यन्तरों के ज्योतिषिकों के सौधर्म ईशान आदि वैमानिकों के विमानावासों में एवं अवेयकविमानावासों में भी चाहे वे संख्यातयोजनविस्तारवाले हो प्रश्नोत्तररूप से सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि एवं मिश्रदृष्टियों के उत्पत्तिकादिविषयक तीन आलापक कहना चाहिये । 'अणुत्तरविमाणेसु एवंचेव' अनुत्तरविमानों में भी इसी प्रकार से तीन आलापक प्रश्नोत्तररूप से कहना चाहिये ! 'नवरं तिसु बि आलावएस्तु मिच्छादिट्टी, सम्मामिच्छादिट्टी य न भण्णंति सेतं तं चेव' परन्तु यहां पर तीनों-उद्वर्तना और सत्ताविषयक अलापकों में, संख्यातयोजनविस्तारवाले एवं असंख्यात કુમારાવાસમાં સમ્યગ્દષ્ટિ, મિયાદષ્ટિ અને સમ્યગ્ર મિથ્યાષ્ટિઓના ઉત્પાદ, तन मन सत्ता विषय मा.५ प्रश्नोत्त२३२ न ." एवं जाव गेवेजविमाणेमु वि" २४ प्रमाणे नामा मनपतियामा, पान. વ્યન્તરમાં, તિષિકમાં, સૌધર્મ આદિ વૈમાનિકના વિમાનાવાસમાં અને નવરૈવેયક વિમાનાવાસમાં, સંખ્યાત અને અસંખ્યાત એજનના વિસ્તારવાળા આવાસ અથવા વિમાનાવાસમાં, પ્રશ્નોત્તર રૂપે સમ્યગ્દષ્ટિ, મિથ્યાદષ્ટિ અને मिल्टियोन 648 माह विषय ३ मा रु . " अणुत्तरविमाणेसु एवं चेव" अनुत्तर विभानामा ५६५ मे २॥ त्र साताप प्रश्नोत्तर ३ ४ नसे. “ नवरं तिसु वि आलावएसु मिच्छाट्ठिी, सम्मामिच्छादिदी य न भण्णं ति, सेसं तंचेव" ५२न्तु सध्यात भर असभ्यात જનન વિસ્તારવાળાં અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પાદ, યવન અને સત્તાવિષય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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