SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे भवनवासिनः, वानव्यन्तराः, ज्योतिषिकाः, वैमानिकाः । गौतमः पृच्छति - 'भवणवासीणं भंते ! देवा कविहा पण्णत्ता ? ' हे भदन्त । भवनवासिनः खलु देवाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - ' गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! दशविधा भवनवासिनो देवाः प्रज्ञप्ताः, ' तं जहा - असुरकुमारा एवं भेभो जहा बितियस देवदेसर जात्र अपराजिया सव्वट्टसिद्धगा ' तद्यथा - असुरकुमाराः, एवं रीत्या भेदः देवमकारो, यथा द्वितीयशतके सप्तमे देवोदेशके प्रतिपादितस्तथैव अत्रापि प्रतिपादनीयः यावत् - नागकुमाराः, सुवर्णकुमाराः, अग्निकुमाराः, विद्युत्कुमाराः, उदधिकुमाराः, द्वीपकुमाराः पवनकुमाराः, दिशाकुमाराः, स्तनितकुमाराः, वानव्यन्तराः, अष्टौ ज्योतिषिकाः पञ्च वैमानिकाः सौधर्मेशानादयो द्वादश, वैमाणिया' भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक, अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-भवणवासी णं भंते! देवा कबिहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! जो भवनवासी देव हैं वे कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम! 'दसविहा पण्णत्ता' भवनवासी देव १० प्रकार के कहे गये हैं । 'तं जहा ' जो इस प्रकार से हैं- 'असुरकुमारा एवं भेओ जहा बितियसए देवदेसए जाव अपराजिया सव्वट्टसिद्धगा' असुरकुमार यावत्-नागकुमार, सुवर्णकुमार, अग्निकुमार, विद्युत्कुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, पवनकुमार, स्तनितकुमार, देवों के इस प्रकार के भेदों का कथन द्वितीय शतक के सप्तम उद्देशक में कहा गया है। वहां वानव्यन्तर आठ प्रकार के, ज्योतिषिक पांच प्रकार के वैमानिक और सौधर्म ईशान आदि ५२४ गौतम स्वामीने प्रश्न - " भवणवाखीणं भंते! देवा कइविहा पण्णत्ता १" હે ભગવન્! ભવનવાસી દેવા કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? भडावीर प्रभुना उत्तर- " दसविहा पण्णत्ता - तंजहा " हे गौतम! लवनवासी हेवाना नीचे प्रमाणे इस प्रकार ह्या छे - " असुरकुमारा एवं भेओ जहा बितियसए देवुद्देस जाव अपराजिया सव्वट्टसिद्धगा " असुरकुमार आहि ભેટ્ટાનું જેવું કથન બીજા શતકના સાતમાં ઉદ્દેશમાં કરવામાં આવ્યુ છે, એવુ કથન અહી ગ્રહણ કરવુ જોઈ એ ત્યાં ભવનપતિના દસ ભેદો આ પ્રમાણે કહ્યા છે— (१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, ( 3 ) सुवर्णा कुमार, (४) अन्निभार, (4) विद्युत्कुभार, (६) अधिकुमार, (७) द्वीपकुमार, (८) वायुकुमार, (८) हिशा भार અને (૧૦) શ્તનિતકુમાર વાનન્યન્તર દેવાના આઠ પ્રકાર અને જ્યેાતિષિકાના પાંચ પ્રકાર કહ્યા છે. વૈમાનિક દેવેાના સૌધમ કલ્પવાસી આદિ ૧૨ પ્રકાર કહ્યા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy