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________________ ४९६ भगवती सूत्रे , , I , , स्राणि - नरकावासलक्षाणि प्रज्ञप्तानि ? इति पृच्छा, भगवानाह - ' गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससयस हस्से पण्णत्ते, सेसं हा पंकष्पभाए' हे गौतम! तमः प्रभाशं खलु पृथिव्याम् खलु एकं पश्ञ्चोनं निरयानास शतसहस्रम् - पश्ञ्चन्यूनै कलक्ष नरकावासाः प्रज्ञप्ताः शेषं यथा पङ्कमभायां पतिपादितं तथा तमायामपि प्रतिपादनीयम् अत्र तमः प्रभायामेका कृष्णलेश्या वर्तते । ' अहे सत्तमाए णं भंते ! goate कई अणुत्तरा मह महालया महानिरया पण्णत्ता ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! अधः सप्तम्यां खलु पृथिव्यां कति अनुत्तराः महातिमहालयाः अतिविस्ताराः, महानिरयाः महानिरवावासाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - गोयमा ! पंच अणुत्तरा जात्र अपहाणे' हे गौतम! अधःतस्यां पृथिव्यां पञ्च अनुत्तरा यावत् महावि महालया महानिरयावासाः कालः, महाकालः, रौरवः, महारौरवः, अप्रतिष्ठानं च में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा'गोधमा ' हे गौतम! ' एगे पंचूणे निरयावास सय सहस्से पण्णत्ते' तमः प्रभा नाम की छठी पृथिवी में पांच कम एक लाख नरकावास कहे गये हैं। बाकी का और सब कथन पंकप्रभा में किये गये कथन के अनुसार ही यहां जानना चाहिए । यहाँ एक कृष्णलेश्या ही है । 'अहे सत्तमाए णं भंते! पुढवीए कई अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता' इस सूत्र द्वारा गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! अधः सप्तमी पृथिवी में कितने अनुत्तर एवं अतिविस्तार वाले महानिरय- महानरका - वास कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा' हे गौतम! 'पंच अणुत्तरा जाव अपइद्वाणे ' अधः सप्तमी पृथिवी में पांच अनुत्तर नरकावास अप्रतिष्ठान तक कहे गए हैं और ये बहुत ही अधिक विस्तार वाले कहे गए हैं । इनके नाम इस प्रकार से हैं- काल १, महाकाल २, भडावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा ! " हे गौतम !" एगे पंचूणे निरयावासस्यसहस्से पण्णत्ते" तमः अला नरम्पृथ्वीमां को साथमा यांचे छा (૯૯૦૯૫) નરકવાસે છે. બાકીનુ' સમસ્ત કથન પુકપ્રભાના કથન પ્રમાણે જ સમજવુ' આ નરકમાં કૃષ્ણુલેસ્યાવાળા નારકી જ હાય છે. गौतम स्वाभीनो प्रश्न - " अहे सत्तमा णं भंते ! पुढवीए कइ अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता ?" हे भगवन् ! अधःससभी पृथ्वीमां डेटसा અનુત્તર અને ખૂબ જ વિસ્તારવાળા મહાનરકાવાસા કહ્યા છે ? भडावीर प्रलुनो उत्तर- " गोयमा !" हे गौतम! " पंच अणुत्तरा जाव अपइट्ठाणे " अधः सभी पृथ्वीमां पांच अनुत्तर नरावासेो ह्या छे. तेभना વિસ્તાર ઘણા જ માટે છે તેમનાં નામ નીચે પ્રમાણે છે–(૧) કાલ, (૨) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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