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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०१ सू० ५ शर्कराप्रभादिषु निरयावासादिनि. ४९३ ___ वालयप्पभाए णं पुच्छा' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! वालुकामभायां खलु पृथिव्यां कियन्ति निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! पन्नासनिरयावाससयसहस्सा पण्णता, सेसं जहा सक्करप्पभाए, णाणत्तं लेसासु, लेसाओ जहा पहमसए' हे गौतम ! वालुकाममायां पृथिव्यां पश्चदशनिर. यावासशतसहस्राणि-नरकावासलक्षाणि प्रज्ञप्तानि शेषं यथा शर्करायभायां पृथिव्यां प्रतिपादितम् तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम् , केवलं नानात्वं-पृथक्त्वं लेश्याम भवसे यम् ताश्च लेश्याः यथा प्रथमशत के प्रथमोदेशके उक्ता स्तथैवात्रापि वक्तव्याः। पूर्व रत्नप्रभायां शर्करामभायां च द्वयोः पृथिव्योरेका कापोतलेश्या प्रतिपादिता, अत्र वालुकाप्रभायां तु कापोतनीलेति लेश्याद्वयं भवति । तथा च संग्रहगाथा-'काउ दोसु तइयाइ, मीसिया नीलिया च उत्थीए । पंचमियाए मीसा, कण्हा तत्तो परमकण्हा ॥ १॥ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'बालुगप्पभाएणं पुच्छ।' है भदन्त ! बालुका प्रभा पृथिवी में कितने लाख नरकाबास कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'पन्नरस निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता' वालुकाप्रभा में १५ लाख नरकावास कहे गये हैं। 'सेस जहा सक्करप्पभाए, णाणत्तं लेसासु, लेसाओ जहा पढमसए' बाकी का यहां का और सब कथन शर्कराप्रभापृथिवी में जैसा कहा गया है वैसा ही है. यदि कुछ यहां शर्कराप्रभापृथिवी के कथन की अपेक्षा भिन्नता है तो वह लेश्याओं में है ये लेश्याएँ प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार हैं, अर्थात् रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा इन दोनों पृथिवियों में एक कापोतलेश्या कही गई है-परन्तु यहां वालु का प्रभा में कापोत और नील ये दो लेश्याएँ कही गई हैं- इनकी गौतम स्वाभानी प्रश्न-" बालुयप्पभाएणं पुच्छा" 8 लगवन् ! दुसપ્રભા નામની ત્રીજી નરકમૃથ્વીમાં કેટલા લાખ નરકાવાસે છે ? भडावी२ असुन उत्त२-" गोयमा!" गौतम! " पन्नरसनिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता" वायुप्रमा पृथ्वीमा ५४२ सास न२४वास छे. "सेसं जहा सक्करप्पभाए, णाणत्तं लेसासु, लेसाओ जहा पढमसए" माडीतुं સમસ્ત કથન શર્કરા પ્રમાના કથન પ્રમાણે જ સમજવું શર્કરપ્રભાના કથન કરતાં વાલુકાપ્રભાના કથનમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે રત્નપ્રભા અને શકે. રામભામાં એક કાપતવેશ્યા જ કહી છે, પરંતુ વાલુકાપ્રભામાં કાપત અને નીલ, આ બે લેસ્થાઓને સદ્ભાવ કહ્યો છે. આ વેશ્યાઓને અનુલક્ષીને "काऊ दोसु तइयाइ” त्या सहाया भावामा भावी छ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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