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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० १ सू०३ रत्नप्रभापृथिव्यां नरकावासादिनि. ४७९ अचरमा:- पूर्वोक्तचरमभिन्नाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! इमी से रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहर सेसु संखेज्जवित्थ डेसु नरएसु संखेज्जा नेरइया पण्णत्ता, संखेज्जा काउलेस्सा पण्णत्ता' हे गौतम ! अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां त्रिंशति निरयावासशतसहस्रषु त्रिशल्लक्षनरकावासेषु संख्येयविस्तृतेषु नरकेषु संख्येया नैरयिकाः मेज्ञप्ताः, संख्येयाः कापोतलेश्यावन्तः प्रज्ञप्ताः, एवं जाव संखेज्जा सन्नी पण्णत्ता' एवं-तथैव यावत् संख्येयाः कृष्णपाक्षिकाः, संख्येयाः, शुक्लपाक्षिकाः, संख्येयाः संज्ञिनः प्रज्ञप्ताः, 'असन्नी सिय अस्थि, सिय नस्थि' असंज्ञिनः स्यात् कदाचित् सन्ति, स्यात्-कदाचित् न सन्ति, 'जह अस्थि जहणेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उकोसेणं संखेना पणत्ता' ये के चरम समय में वर्तमान ऐसे कहे गए हैं ? ? ' केवइया अचरिमा पण्णत्ता' कितने अचरिम-पूर्वोक्त चरमों से भिन्न कहे गए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'इमीसे रयण्गपभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जविस्थडेसु नरएसु संखेजा नेरइया पण्णत्ता, संखेज्जा काउलेस्सा पण्णत्ता' इस रत्नप्रभा पृथिवी में जो ३० लाख नरकावास कहे गए हैं, और उनमें जो संख्यात योजन के विस्तार वाले नरकावास कहे गये हैं-उनमें संख्यात नैरयिक जीवों की सत्ता कही गई है तथा कापोतलेश्यावाले नैरयिक भी संख्यात ही कहे गये हैं। 'एवं जाव संखेज्जा सन्नी पण्णत्ता' इसी प्रकार से यावत् संख्यात ही कृष्णपाक्षिक नारक कहे गए हैं, और संख्यात ही शुक्लपा: क्षिक नारक कहे गए हैं, तथा संख्यात ही संज्ञी नारक कहे गए हैं। 'असन्नी सिय अस्थि, सिय नस्थि' असंज्ञी नारक वहां कभी होते भी हैं और नहीं भी होते हैं 'जइ अस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा, तिन्नि
महावीर प्रभुना उत्त२-" गोयमा !" हे गौतम ! “ इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु संखेज्जा नेरइया पण्णत्ता, संखेज्जा काउलेस्सा पण्णत्ता" । २त्नमा पृथ्वीना 30 साम નરકાવાસમાંના સંખ્યાત એજનના વિસ્તારવાળા જે નરકાવાસ છે તેમાં સંખ્યાત નારકનું અસ્તિત્વ કહ્યું છે, તથા કાપતલેશ્યાવાળા નરકે પણ सभ्यात ४ हा छ. “ एवं जाव संखेज्जा सन्नी पण्णत्ता' मे प्रमाणे કપાક્ષિક નારકે પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે. શુકલપાક્ષિક નારકે પણ सभ्यात ar ॥ छ भने सशी २ ५ सयात ह्या छ. " असन्नी सिय अस्थि, सिय नस्थि " अशी ना२। यारे त्यां हय छ, भने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦