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________________ ३५ भगवतीसूत्रे परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकना-अपरभागे द्विप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'छहा कज्जमाणे छ परमाणुपोग्गला भवंति' षट्रप्रदेशिकः स्कन्धः षोढाक्रियमाणः षट् परमाणुयुद्गला भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'सत्तभंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! सप्तपरमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते, एकतः संहत्य किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति पृच्छा, भगवानाह-गोयमा ! सत्तपएसिए खंधे भवई' हे गौतम ! सप्तपरमाणुयुद्गलाः एकतः संहत्य सप्तप्रदेशिकःस्कन्धो भवति, ‘से भिज्जमाणे दहात्रि जाव सत्तहा वि कज्जई' स-सप्तप्रदेशिक स्कन्धो भिद्यमानो द्विधापि यावत्-त्रिधापि, चतुर्धापि, पञ्चधापि, सप्तधापि क्रियते तत्र ‘दुहा कज्जमाणे सिए खंधे भवइ ' षट्प्रदेशिक स्कंध के जब पांच विभाग किये जाते हैं तय एक तरफ चार पुद्गल परमाणुरूप चार विभाग होते हैं और एक तरफ विप्रदेशी स्कन्धरूप एक विभाग होता है। 'छहा कज्जमाणे छ परमाणुगोग्गला भवंति' षट् प्रदेशिक स्कंध के जब छह विभाग किये जाते हैं तब छह पुद्गल परमाणुरूप छ विभाग होते हैं। अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' सत्त भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! सात परमाणुपुद्गगल जब आपस में मिलते हैं-तब उनके मिलने पर कौनसी वस्तु उत्पन्न होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम। 'सत्तपएसिए खंधे भवइ' सात प्रदेशों वाला एक स्कन्ध उत्पन्न होता है। ' से भिज्जमाणे दुहावि जाव सत्तहा वि कज्जइ' इस स्कन्ध का जब विभाग किया जाता है-तष इसके दो भी, तीन भी, चार भी, पांच भी, छह भी और सात भी વિભકત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુદ્ગલ પરમાણુ રૂપ ચાર विलागी भने विशि४ २४५ ३५ मे विलास / जय छे. "छहा कज्जमाणे छ परमाणुपोग्गला भवंति " न्यारे ७ प्रशि: २४धने विलाગોમાં વિભકત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુલ પરમાણુવાળા છે વિભાગે થઈ જાય છે गौतम स्वाभाना प्रश्न ( सत्त भंते ! परमाणुगोग्गला पुच्छा) 3 मा. વન ! જ્યારે સાત પરમાણુ યુદ્ગલે એક બીજાની સાથે મળી જાય છે, ત્યારે તેમના સંગથી કઈ વસ્તુ ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा!" गौतम ! “सत्तप्पएसिए खंधे भवइ " तमना संयोथी से सात प्रशि४ २४५ मने छ. ' से भिज्जमाणे दहा वि, जाव सत्तहा वि कज्जइ” मा सात प्रशि: २४ घना न्यारे વિભાગે કરવામાં આવે છે ત્યારે તેના બે, ત્રણ, ચાર, પાંચ છ અથવા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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