SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४८ भगवतीसूत्रे प्रमाणिकतया स्त्री कुर्वन्नाह- सेवं भंते ! से भंते ! ति जाव विहरइ' हे भदन्त ! तदेवं-भवदुनं सर्व सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं-भवदुक्तं सर्व सत्यमेवेति यावत्ब्रुवन् विहरति-तिष्ठति ॥ सू०३ ॥ ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक पञ्चदशभाषा कलितललितकलापालापकाविशुद्धगधपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालबतिविरचिताय श्री "भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिका. ख़्यायां व्याख्यायां द्वादशशतके दशमोद्देशकः समाप्तः॥१२-१०॥ ॥ द्वादशशतकं समाप्तम् ॥ जानलेना चाहिये । अन्त में गौतम भगवान् के वाक्य को प्रामाणिकरूप से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि 'सेवं- भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाय विहरइ' हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है, हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है ऐसा कह कर वे यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥सू०३॥ जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराज कृत " भगवतीसूत्र" की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके बारहवें शतक का ॥ दशवां उद्देशक समाप्त १२-१०॥ बारहवां शतक संपूर्ण हुआ॥१२॥ सेवं भंते ! ति जाव विहरइ" 3 भगवन् ! २५नी पात सथा सत्य छे. હે ભગવન્! આપે જે કહ્યું તે સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમને સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા. સૂ૩ જૈનાચાર્ય જેનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્રની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના બારમાં શતકને દસમો ઉદ્દેશ સમાપ્ત ૧૨-૧૦ના બારમું શતક સમાપ્ત છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy