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भगवतीसूत्रे परस्स आइडे नो आयार, तदुभयस्स आइडे अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३' हे गौतम ! चतुष्पदेशिकः स्कन्धा आत्मानः स्वस्य चतुष्पदेशिकस्कन्धस्य वर्णादिपर्यायैः आदिष्टे आदेशे सति आत्मा-स्वपर्यायापेक्षया सद्रूपो भवति१ परस्य पञ्चपदेशिकादि स्कन्धान्तरस्य पर्याय आदिष्टे आदेशे सति नोआत्मा-परपर्यायापेक्षया असदुरूपो भवति२, तदुभयस्य स्वपररूपस्य पर्यायैः आदिष्टे आदेशे सति अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नोआत्मा इति च युगपद् व्यपदेष्टुमशक्यम् ३, 'देसे आइहे सम्भावपज्जवे देसे आइ असमावपज्जवे? चउभंगो४' यदा देशः एकः आदिष्टः स्वपर्यायः सद्भावपर्यवः, देशः अपरः आदिष्टः परपर्यायः असद्भाव'अप्पणो आइट्टे आया १, परस्स आइढे नो आयार, तदुभयस्स आइडे अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय' चतुष्प्रदेशिक स्कंध अपने वर्णादि रूप पर्यायों से आदिष्ट होने पर सद्रूप है ? पश्चप्रदेशिकादि स्कन्धान्तर की पर्यायों से आदिष्ट होने पर वह असदुरूप है क्योंकि परपर्यायों की अपेक्षा से-वह असद्रूप होता है २, स्वपर्याय एवं परपर्याय इन दोनों पर्यायों से जब वह आदिष्ट होता है, आत्मा नो आत्मा शब्दों से वह युगपत् आदिष्ट नहीं हो सकता है, इसलिये वह अवक्तव्य है। ये असंयोगीको ६ तीन भंग हुए। विकसंयोगी १२ भंग इसप्रकार'देसे आइढे सम्भावपज्जवे देसे आइढे असम्भावपज्जवे चउभंगो' जब अपनी पर्यायों से सद्भाव पर्यायवाला उसका एकदेश आदिष्ट होता है-और परपर्यायों की अपेक्षा से असद्भाव पर्यायवाला दूसरा देश आदिष्ट होता है-तब वह चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध सद्रूप होता है
महावीर प्रभुने। उत्तर-“गोयमा!" गौतम ! “ अप्पणो आइछे आया१ परस्स आइटे नो आया२, तदुभयस्स आइट्रे अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३” (१) यतुशि४ २४ धना तन पाताना I यानी अपे. ક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે, તે તે સદુરૂપ છે. (૨) પાંચ પ્રદેશિક આદિ સ્કન્ધાન્તરની પર્યાની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવે, તે તે અસદુરૂપ છે, કારણ કે પરર્યાની અપેક્ષાએ તે અસદુરૂપ હોય છે. (૩) રવર્યા અને પરપર્યા, આ બનેની અપેક્ષાએ જ્યારે કહેવામાં આવે છે, ત્યારે તે આત્મા અને ને આત્મા શબ્દો વડે એક સાથે અવાચ્ય હોવાને કારણે તે અવક્તવ્ય ३५ सय छे. “देसे आइट्रे सब्भावपज्जवे देसे आइटे असब्भावपज्जवे चउभंगो" ब्यारे तनी पर्यायानी अपेक्षा समाप पर्यायवाणे! तन मेश આદિષ્ટ (કથિત) થાય છે, અને પરપર્યાની અપેક્ષાએ અસદુભાવ પર્યાયવાળે બીજે દેશ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે ચતુપ્રદેશિક સકધ (૧) સદુપ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦