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भगवतीसूत्रे
कसायाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि' किन्तु यस्य पुनर्जीवस्य कषायात्मत्वं भवति, तस्य द्रव्यात्मत्वं नियमारस्ति, जीवत्वं विना कषायाणामभावात् । गौतमः पृच्छति-'जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स जोगाया ?' हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य द्रव्यात्मत्वं भवति, तस्य किं योगात्मत्वं भवति ? एवं यस्य योगात्मत्वं भवति तस्य किं द्रव्यात्मत्वं भवति ? भगवानाह-एवं जहा दवियाया कसायाया भणिया तहादवियाया जोगाया य भाणियन्या' हे गौतम ! एवं-पूर्वोक्तरीत्या, यथा द्रव्यात्मनः कषायात्मना सम्बन्धो भणितस्तथा द्रव्यात्मना योगात्मना च सम्बन्धो मणितव्यः, तथा च यस्य द्रव्यात्मत्वं भवति, तस्य योगात्मत्वं स्यादस्ति योगका अवस्थान भी पाया जाता है, इस प्रकार भजना से द्रव्यात्मता के साथ कषायात्मता भी उद्भावित कर लेनी चाहिये परन्तु 'जस्स पुण कसायाया तस्स दरियाया नियमं अस्थि' जहां कषायात्मता होती है वहां नियम से द्रव्यात्मता रहती है। क्योंकि द्रव्यात्मता के विना-जीवत्व के विना-कषायों का सद्भाव नहीं होता है। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' जस्ल णं भंते ! दरियाया तस्स जोगाया' हे भदन्त ! जिसमें द्रव्यात्मता होती है-उसमें क्या योगात्मता होती है ? और जिसमें योगात्मता होती है वहां क्या द्रव्यात्मता होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहा दवियाया कसायाया, भणिया, तहा दवियाया जोगाया य भाणियन्या' हे गौतम ! जिस प्रकार द्रव्यात्मा का कषायात्मा के साथ संबंध कहा गया है, उसी प्रकार द्रव्यात्मा સ્મતાની સાથે કષાયાત્મતાનું અવસ્થાન (વિદ્યમાનતા) હેતું નથી, પરંતુ જ્યારે તે કષાયાવસ્થાવાળો હોય છે, ત્યારે દ્રવ્યાત્મતાની સાથે કષાયામતાને ५५॥ सहसा २७ छ ५२न्तु “जस्स पुण कसायाया तस्स दवियाया नियम अत्यि" rai पायात्मताने! समाय छ, त्यो द्रव्यात्मताने। ५४४ નિયમથી જ સદ્ભાવ રહે છે, કારણ કે દ્રવ્યાત્મતા વિના-ઝવત્વ વિનાકષાને સદ્ભાવ હોતો નથી.
गौतम स्याभाना प्रश्न-" जस्सणं भंते ! दवियाया तस्स जोगाया ?" . ભગવન્! જેમાં દ્રવ્યાત્મતા હોય છે, તેમાં ગાત્મતાને પણ સદૂભાવ હોય છે ખરો ? અને જેમાં ગાત્મતા હોય છે, તેમાં દ્રવ્યાત્મતા હોય છે ખરો? __ महावीर प्रभुने। उत्तर-“ एवं जहा दवियाया कसायाया भणिया, तहा दरियाया जोगाया य भाणियव्वा" हे गौतम ! २ रे द्रव्यात्मताना ४ा. યાત્મતા સાથે સંબંધ કહ્યો, એજ પ્રકારને દ્રવ્યાત્મતાને ચગાત્મતા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦